कुछ बातें बुजुर्गों के काम की ।

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कुछ बातें बुजुर्गों के काम की । बच्चों की भावनाएँ : रखें ख्याल उनका भी।
 


       

        

 

 

कुछ बातें बुजुर्गों के काम की ।

थोड़ी चर्चा पिताओं से मैं कर लेता हूँ । कुछ जगह ऐसा देखने में भी आता है कि पिता लोग हमेशा अपने बच्चों पर रूआब झाड़ते रहते हैं , अशांति होती है । कई बुजुर्ग ऐसे होते हैं जो बड़े जिद्दी और अहंकारी होते हैं ।

जो कह दिया सो कह दिया वाले होते हैं । असहिष्णुता भी आ जाती है इससे भी परिवार की शांति नष्ट होती है । उनको चाहिये कि जैसे – जैसे अवस्था बढ़े घर की जवाबदारी बेटे और बहू के हाथों में सौंपना शुरू कर दें और अपने अंदर एक दूसरी भावना डेवलप करें कि अब मैं इस घर का मालिक नहीं मेहकान हूँ ।

यह बात बुजुर्ग सोचें बच्चे नहीं होता उल्टा है बुजुर्ग अपने आपको मालिक समझते हैं । कहते हैं कब जायें ये काम खत्म हो । ऐसा नहीं अपने चिंतन को आध्यात्मिक बनाइये , , अपने स्वभाव को सरल बनाइये ।

बच्चों की गलती को अनदेखी कीजिये । उनसे अगर कोई गलती हो तो उन्हें हिदायत दे दीजिये , सीख दीजिये , सजा मत दीजिये | ज्यादा टोका टाकी मत कीजिये ज्यादा नुक्ता चीनी मत कीजिये । ज्यादा टोका टाकी , ज्यादा नुक्ता चीनी करने से आप अपनी प्रासंगिकता खो बैठोगे ।

कम बोलियेगा तो असर रहेगा और ज्यादा बोलियेगा तो असर नहीं रहेगा कम बोलने में असर होता है ज्यादा बोलने में असर नहीं होता । हर सेकेण्ड टिक – टिक हो रही है । हो रही है कि नहीं हो रही ? आपका ध्यान कभी जाता है ? हर सेकेण्ड घड़ी टिक – टिक , टिक – टिक करती है उसका कोई असर नहीं होता और जैसे ही एक घण्टे बाद टन की आवाज होती है आप अलर्ट हो जाते हैं ।

क्या होता हैं ? संत कहते हैं , परिवार में सामंजस्य बनाकर रखना चाहते हो तो टिकटिकाओ मत , जब कोई बड़ी बात हो जाये तो एक टंकार लगाओ , टंकार को हर कोई सुनता है , टिंकार को कोई नहीं सुनता । 

ज्यादा नुक्ता चीनी , बात – बात में टोका टाकी आपकी प्रासंगिकता को खराब कर देगा । बच्चे कहेंगे अरे पापा तो डाँटते ही रहते हैं उनको तो कुछ लगता ही नहीं , हम कितना ही करें उनको तो कुछ अच्छा ही नहीं लगता , उनको तो हम पर विश्वास ही नहीं है , उनको हम पर भरोसा ही नहीं ।

ऐसा करने में गड़बड़ हो जाता है । बच्चे फिर हाथ से निकल जाते हैं वो अनदेखा करना शुरू कर देते हैं या जवाब देना शुरू कर देते हैं । और : जिद्दी मत बनिये जिंदा दिल बनिये । रोबीले मत बनिये रसीले बनिये । जिंदा दिली से काम करिये । जो मैंने कह दिया सो कह दिया ये अकड़ दिल से निकाल दीजिये ।

बड़ी दिक्कत होती इससे ।

 बच्चों की भावनाएँ : रखें ख्याल उनका भी।
 

एक शहर में मैं था वहां मंदिर का निर्माण होना था । समाज की बड़ी भावना थी मंदिर के निर्माण की । वहीं एक युवक जिसकी उस निर्माण व्यवस्था में केंद्रीय भूमिका थी , संपन्न परिवार था , सब कुछ था , सारे गांव भर के लोगों ने दान दिया ।

उस युवक की भी इच्छा थी कि हमें दान देना है पर उसके पिताजी ने कह दिया कि हमें दान नहीं देना । अब क्या करे वह ? पिता ने कह दिया हमें दान नहीं देना । उस युवक ने समझाया , उसकी बहन ने भी समझाया पर उनका नेचर ही कुछ ऐसा जिद्दी नेचर था कि जो एक बार कह दिया फिर वही होगा ।

एक बार कह दिया न सो कह दिया । भैया विचार करो किसी चीज की कमी नहीं है ये भावना का प्रश्न है । भावना जुड़ी है , आप अगर किसी की भावना की कद्र करोगे तो आपकी भावनाओं को भी सम्मान मिलेगा और आप अगर सामने वाले की भावनाओं को कुचलोगे तो सामने वाला भी आपकी भावनाओं को सम्मान नहीं दे पायेगा , भावना को समझने की कोशिश कीजिये ।

वो युवक मेरे पास आया व्यथित हृदय लेकर बोला , महाराज आप लोग कहते हैं , पिता की अवज्ञा मत करो अब मैं ऐसे में क्या करूँ ? हमने कहा कुछ मत कर , तू शांत हो जा , ये सोच ले कि जब योग होगा तो कार्य होगा । फिर मैंने उसी दिन अपने प्रवचन में इसी बात को प्रतीकात्मक तरीके से उठाया । 

संयोग से वे महानुभाव प्रवचन में बैठे थे शायद उनको कुछ समझ में आया और प्रवचन के बाद वो मेरे पास आये बोले महाराज जी मेरी भी कुछ इच्छा है इस मंदिर में दान करने की ।

बेटा बाहर खड़ा था उसे बुलाया और कहा देखो तुम्हारे पापा क्या कह रहे हैं ? उस क्षण उनके बेटे को जो खुशी हुयी उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता । कई – कई बार ऐसी जिद भी खतरनाक हो जाती है चाहे धार्मिक मैटर पर हो , चाहे पारिवारिक मैटर पर हो : सामाजिक या व्यापारिक मैटर पर हो , जिद मत करिये । अपने बच्चों की अच्छाईयों को प्रोत्साहित कीजिये । आप विचार करो बहू के द्वारा खाना बनाने में हुयी गलतियों को तो आप रोज कोसते होगे ।

सासुओं से भी कह रहा हूँ बहुओं से कहती हैं आप ऐसा कि , तूने ऐसा नहीं बनाया वैसा नहीं बनाया । खाना में कुछ चूक हो जाये तो रोज कोस देते हो लेकिन कभी अच्छा खाना बनाने पर मन प्रशंसा करते हो ? विचार करो , प्रशंसा और प्रोत्साहन अगर नहीं देंगे तो अपनत्व कैसे आयेगा ? प्रशंसा कीजिये ।

 विश्वासो नैव मुंचति 

 

एक सज्जन जो हमसे बहुत जुड़े थे वे अपने बेटे से बहुत खिन्न रहते थे । मैं तो सोचता था कि बेटा सारा व्यापार संभालेगा तो मैं परमार्थ के कार्य में लगूंगा पर मुझे तो अपने बेटे पर भरोसा नहीं दिखता लगता है सब मिटा देगा । जब भी आते अपने बेटे की शिकायतें करते और बेटे की स्थिति ऐसी कि पूरे गांव में लोकप्रिय बहुत व्यवहार कुशल लड़का लेकिन पिता हमेशा उसकी आलोचना करते ।

एक दिन मैंने बेटे से पूछा क्या बात है ? बेटे ने कहा महाराज जी क्या बताऊँ , आप मुझे जानते हो , सारा गांव मेरा प्रशंसक है लेकिन मेरे पिताजी कभी मेरे किसी कार्य के लिये प्रशंसा नहीं करते मैं कुछ भी करता हूँ तो मुझे टोंकते हैं , हतोत्साहित करते हैं ।

हर बात पर टोंकते हैं , मैं अच्छा करूँ तो और बुरा करूँ तो मुझ पर उनको विश्वास ही नहीं । मैंने उनके पिता को बुलाया बोला अपने स्वभाव को बदलो नहीं तो बेटे को खो दोगे । उस पर भरोसा करो , विश्वास करना सीखो एकाध बार गलती करेगा , गलती किये बिना सीखेगा कैसे ? देखो थोड़ा ढील छोड़ोगे तब तो उसे पता लगेगा कि उसके हाथ में क्या है ?

मेरे कहने पर उन्होंने अपने बेटे पर विश्वास करना शुरू कर दिया । धीरे – धीरे उसके ऊपर जवाबदेहियां देना शुरू किया और अब वे बहुत खुश हैं क्योंकि उनका पूरा कारोबार अब उस बेटे ने सम्भाल लिया है । वही बेटा जो आजतक नालायक दिखता था आज लायक हो गया । बेटा कुछ अच्छा कार्य करे प्रशंसा करो वो भी तो प्रशंसा और :

प्यार चाहता है । आलोचना और डाँट तो सब करते हैं लेकिन प्रशंसा और प्यार देने वाले लोग बहुत कम होते हैं । आपको वो भी देना चाहिये तो पिता पुत्र के सम्बन्ध के लिये , सास बहू के सम्बन्ध के लिये नितांत अनिवार्य है ।

यदि इन बातों को आप ध्यान नहीं रखेंगे तो काम नहीं चलेगा । वास्तव में हमारी भूमिका क्या है और क्या होनी चाहिए ? पिता पुत्र के सम्बन्ध यदि ऐसे हों तो हमेशा अच्छा रहेगा इसलिये मैं कहता हूँ कि अपने बच्चों के प्रति ये बात ध्यायन में रखे ज्यादा आवेश और उत्तेजना की बात न करें ।

परिवार में हर चीज में थोड़ा सा बैलेंस करके चलें तो आपके जीवन में बहुत कुछ अच्छाईयां प्रकट हो सकती हैं । अब परिवार के थोड़े दूसरे सदस्यों को ले लें । पति पत्नी है , भाई – भाई है , देवरानी – जेठानी है , ननद भौजाई है । इसके अलावा और कौन है घर में ? इतने ही हैं ।

पति – पत्नी के बीच क्या संबंध होना चाहिये ? आजकल हमारी संस्कृति में एक शब्द गढ़ा है दम्पत्ति । दम्पत्ति कब है जब दोनों एक दूसरों के भावों को समझें तब तो है दम्पत्ति अन्यथा है गमपति । गमपति यानी आपस में तालमेल नहीं । दोनों के बीच में विचारों का मेल होना चाहिये सामंजस्य होना चाहिये एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान देना सीखें ..

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