सोच का नज़रिया , नज़रिये का सोच ।

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सोच का नज़रिया , नज़रिये का सोच


   जीवन को देखने का नजरिया

वस्तुतः हमारा संपूर्ण जीवन हमारी सोच पर अवलंबित है , हमारी चिंतनधारा पर टिका है । हम कैसा सोचते हैं , हमारा कैसा चिंतन है , हमारा अपना नजरिया कैसा है , हम चीजों एवं घटनाओं को किस दृष्टि से देखते हैं , हमारा संपूर्ण जीवन इसी पर निर्भर करता है ।

घटनायें एक होती हैं , लेकिन उस घटना को देखने के अलग – अलग दृष्टि से उसके नतीजे अनेक हो जाते हैं । सब अपने – अपने नजरिये से देखते हैं , सब अपनी – अपनी दृष्टि से देखते हैं । संत कहते हैं कि हमारे जीवन में सबसे बड़ी भूमिका हमारे अपने नज़रिये की होती है ।

हमारे जीवन की समस्त गतिविधियां हमारे नजरिये से , हमारी सोच से , हमारी चिंतनधारा से प्रभावित होती है । नज़रिया अच्छा होता है तो जीवन में सारे परिणाम अच्छे होते हैं । 

नजरिया खराब होता है तो जीवन के सारे की परिणाम खराब होते हैं । नज़रिया के अच्छे होने पर सोच अच्छी होती है । सोच के अच्छे होने पर व्यवहार अच्छा होता है और व्यवहार के अच्छे होने पर जीवन सुंदर बनता है ।

नज़रिया खराब तो सोच खराब , सोच खराब तो प्रवृत्ति खराब , प्रवृत्ति खराब तो व्यवहार खराब और  जीवन का व्यवहार खराब तो जीवन खराब ।

सब कुछ हमारे अपने नजरिये के ऊपर निर्भर है । हम चाहें तो अपने जीवन को बेहतर भी बना सकते हैं और हम चाहें तो अपने जीवन को खराब भी बना सकते हैं ।

दुनिया में वे लोग भी उत्पन्न हुए जिन्हें आज हम महात्मा के रूप में पूजते हैं , और दुनियां में वे लोग भी उत्पन्न हुए जो आज दुरात्मा के रूप में जाने जाते हैं ।

पर विचार किया जाये तो किसी महात्मा के माथे पर तिलक लगा नहीं होता है किसी दुरात्मा के सिर पर सींग उगी हुई नहीं होती । जन्म से न कोई महात्मा होता है और जन्म से न कोई दुरात्मा होता है ।

वस्तुतः किसी व्यक्ति के जीवन की ऊंचाई उसके नज़रिये की ऊंचाई पर निर्भर करती है अगर नज़रिया अच्छा हुआ तो व्यक्ति शीर्ष पर चढ़ जाता है , सारी मानवता का आदर्श बन जाता है और नज़रिया खराब हुआ तो वह रसातल में पहुँच जाता है , पूरी मानव जाति के लिये कलंक बन जाता है ।

मनुष्य का संपूर्ण जीवन उसके नज़रिये के ऊपर निर्भर करता है । वही नजरिया उसका उत्कर्ष कराता है और वही नजरिया उसका अपकर्ष करा देता है । 

नजरिये के बल पर ही वह अपने जीवन का उत्थान करता है तो नज़रिये के बल पर ही जीवन का पतन होता है । वस्तुतः नज़रिये से हमारी सोच जुड़ी है जैसा नज़रिया वैसी सोच और यूं कहें कि हमारी सोच से हमारा नज़रिया भी प्रभावित होता है , दोनों चीजें एक साथ जुड़ती हैं ।

आज लोग अपने दुःखों का रोना रोते हैं , अपने जीवन की समस्याओं को भुनाने क बात करते हैं । हर आदमी अपने जीवन की समस्याओं से ग्रसित है और दुःखी है । संत कहते हैं सच्चे अर्थों में विचार किया जाये तो बाहर की व्यवस्थायें हमें दुखी नहीं करती , दुखी करता है मनुष्य का नजरिया ।

नज़रिया के बल पर ही मनुष्य सुखी हो सकता है तो नज़रिया के बल पर ही व्यक्ति दुखी हो सकता है । हम चाहें तो अच्छे नजरिये के बल पर अपने भीतर सकारात्मकता को प्रकट कर सकते हैं और सकारात्मकता के बल पर अपने जीवन में अहोभाव का अलग आनंद उत्पन्न कर सकते हैं , जीवन में एक अभिनव उल्लास की अभिव्यक्ति कर सकते हैं , और यदि न हो तो सब गड़बड़ भी हो सकता है ।

आप किसी के घर मेहमान हुए , सामने वाले ने आत्मीय स्वागत किया और मेवा डला आधा गिलास दूध का आपके हाथ में पकड़ाया ।

आधा गिलास  दूध मेवा से भरा हुआ । उस गिलास को देखकर आपके मन में दो प्रकार की प्रतिक्रिया हो सकती हैं । यदि आपका नज़रिया सकारात्मक है तो आप अहोभाव से भरोगे और कहोगे , कितना बढ़िया आदमी है , दूध भी पिलाया तो मेवा मिश्री डला हुआ पिलाया । और हो सकता है किसी के मन में ऐसी भी प्रतिक्रिया हो , अरे , बड़ा काइयां आदमी है , दूध भी पिलाया तो आधा गिलास । दोनों प्रकार की प्रतिक्रियायें ।

एक व्यक्ति आधा गिलास दूध को लेकर अहोभाव से भर रहा है और दूसरा व्यक्ति आधे गिलास दूध को देखकर अपने मन में नकारात्मक भाव पैदा कर रहा है , एक मन में अहोभाव उत्पन्न कर रहा है , एक के मन में अप्रसन्नता प्रकट हो रही है ।

पहलू दोनों हैं । हम यदि खाली गिलास को देखेंगे तो हमारा दिमाग खाली बना रहेगा जैसे खाली दिमाग शैतान का । वो तकलीफ देगा , लेकिन हमारी दृष्टि भरेपन पर होगी तो हमारी जिंदगी में अहोभाव की वृद्धि होगी ।

संत कहते हैं कि सदैव अपनी दृष्टि को भरेपन की तरफ रखो , लेकिन जो भीतर से भरा होता है उसको सब भरा दिखाई देता है और जो भीतर से खाली होता है , उसको बाहर का सब खाली – खाली दिखाई पड़ता है ।

वस्तुतः मनुष्य की मनोवृत्ति जैसी होती है , उसका सारा नज़रिया वैसा ही हो जाता है , इसलिए अपनी मनोवृत्ति को ठीक रखने की बात हमें समझने की आवश्यकता है क्योंकि हमारा संपूर्ण जीवन हमारी मनोवृत्ति पर टिका हुआ है , मनोवृत्ति से ही नज़रिया बनता है और नज़रिया से चिंतन की धारा , चिंतन की धारा से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से जीवन । 

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