ज्ञान समान न आन , जगत में सुख को कारण ।

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ज्ञान समान न आन , जगत में सुख को कारण ।

दूसरी बात , अच्छा साहित्य पढ़ें आज लोगों के पठन – पाठन की प्रवृत्तियां थोड़ी सी कम हो गयीं । अब सारा समय टीवी के माध्यम से बीतता है और टीवी में जो कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं उसमें सुबह से शाम तक जितना कुछ होता है वो नकारात्मक ही होता है जो आपकी खुशी को छीनता है ,
 जो आपके चैन को छीनता है , जो आपके सकून को लीलता है , आपके अंदर अनेक प्रकार की दुर्भावनाओं को जन्म दे देता है । 
आप देखिये कि टीवी के माध्यम से हमें क्या मिलता है ? टीवी खोली इतने मरे , इतने घायल , अमुक का अपहरण , अमुक की हत्या , अमुक की लूट , अमुक के घर चोरी , इतने का गबन ।
यही सब समाचार जब आप सब सुबह से पढ़ेंगे तो आप अपने मन में कैसे संस्कार डालेंगे ? उसकी जगह जो समय मिला है भगवान का नाम लेने का , कुछ स्वाध्याय करने का , कुछ पाठ करने का उपक्रम करें जो तुम्हारे मन को अच्छी खुराक दे और मन को अनुशासित कर सके ।
ये सारे आलम्बन आज छूटते जा रहे हैं और दूसरे आलम्बनों को लोग अपनाते जा रहे हैं ऐसी दशा में जीवन कैसे सुखी होगा और आप अपने जीवन में माधुर्य कैसे ला सकेंगें इसलिये मन को अच्छी खुराक दीजिये । 
बंधुओं मैं कहता हूँ तन को जब आप खुराक देते हैं तो उससे भी ज्यादा जरूरी काम मन को खुराक देने की है । तन शिथिल हो जाये तो इतनी दिक्कत नहीं वो फिर पुष्ट हो जायेगा लेकिन मन को जब खुराक नहीं मिलती , अच्छी खुराक नहीं मिलती तो वह बुरी खुराक ले लेता है तब उसे संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है
 इसलिये व्यक्ति को स्वाध्याय से जुड़ने की आवश्यकता है । स्वाध्याय से जुड़ें जो आपके जीवन में अनुशासन उत्पन्न करे ।
व्यक्ति को समझ में आ जाये कि हमारे कृत्य का परिणाम क्या है ? मेरी अच्छी बुरी प्रवृत्ति का नतीजा क्या है ? जो मैं कर रहा हूँ वो मेरे लिये करणीय है या नहीं ? ये सब मैं करूँगा तो इसका दुष्फल मुझे  |  भोगना पड़ेगा , 
ये धारणा व्यक्ति के मन में छा जाये , जम जाये तो फिर उसे ज्यादा उपदेश देने की जरूरत नहीं होगी वो भीतर से परिवर्तित होगा ।

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