सत् संगति , सत् साहित्य , सत्चिन्तन ।

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सत् संगति , सत् साहित्य , सत्चिन्तन 

विचार संक्रामक होते हैं इसलिये अपने विचारों को स्थिर रखने के लिये यदि आप अच्छे विचारों को चाहते हैं , अपनी मनोवृत्ति को ठीक रखना चाहते हैं , क्योंकि मनोवृत्ति ठीक होगी तो जीवन में मधुरता आयेगी इसलिये मनोवृत्ति को ठीक बनाये रखने के लिये मैं आपसे तीन हो बातें कहता हूँ ।
पहली बात अच्छी संगति करें , दूसरी बात अच्छा साहित्य पढ़ें , तीसरी बात अच्छा चिंतन करें । ये आपके जीवन को भीतर से अनुशासित करेगी फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी , किसी व्यक्ति को नहीं कहना पड़ेगा कि तुम क्रोध छोड़ा , किसी व्यक्ति को नहीं कहना पड़ेगा कि तुम अंहकार छोड़ो , तुम चिंता छोड़ो , मन की जितनी भी नकारात्मक बातें हैं वे सब अपने आप शांत होने लगेंगी ।
निमित्त रूप में संगति सबसे पहली है । साधुओं की संगति हमारे जीवन में व्यापक असर डालती है । उनसे हमें एक प्रेरणा मिलती है , मार्गदर्शन मिलता है और उस प्रेरणा से हमारा जीवन बदल जाता है । 
कहते हैं पानी में जैसा रंग डाल दो पानी का रंग वैसा ही हो जाता है । ऐसे ही मनुष्य जैसे लोगों की संगति में रहता है उसका संपूर्ण जीवन वैसा हो जाता है । 
कुयें में अगर लता उतरती है तो अधोगामी हो जाती है और किसी स्तंभ को पकड़ लेती है तो ऊर्ध्वगामी हो जाती है । हमारा जीवन भी यदि गलत लोगों की कुसंगति में पड़ जाता है तो रसातल में चला जाता है और अच्छे लोगों की संगति पा जाता है तो उत्कर्ष को छू लेता है ।
अच्छी संगति साधू जनों की संगति है हमारी संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण बतायी गयी ……

एक घड़ी , आधी घड़ी , आधी में पुनि आध , 
सच्ची संगत साधु की हरै सकल संताप । 

परस पारख कुधात सुहाई
 एक क्षण के सत्संग का भी जो सुख है वो स्वर्ग और अपवर्ग के सुख से भी बड़ा सुख है । ये केवल सत्संग की महिमा दर्शाने के लिये नहीं कहा गया , ये केवल इसलिये कहा गया क्योंकि इससे व्यक्ति के जीवन में जो रूपांतरण घटित होता है ,
वो संसार में कहीं नहीं होता और वास्तविक सुख जीवन के रूपांतरण घटित होता है ,
वो संसार में कहीं नहीं होता और वास्तविक सुख जीवन के रूपांतरण का ही सुख है । मनोवृत्ति के परिवर्तिन का सुख है । दि व्यक्ति की मनोवृत्ति परिवर्तित हो जाती है तो उसका जीवन धन्य हो जाता है इसलिये अच्छी संगति करें । 
 
जैसी संगत वैसी रंगत की बात आप सब हमेशा सुनते हैं कि जैसी संगति होती है  वैसा ही सारा जीवन हो जाता है इसलिये अच्छी संगति रखें , अच्छे लोगों के बीच रहें , अच्छे माहौल में रहें ताकि आपके जीवन पर कोई नकारात्मक बातें हावी न हो सकें ।
नकारात्मक बातों को नियंत्रित करें । आप ऐसे लोगों के साथ उठना बैठना करें जिससे कि आपके भीतर अच्छी भावनायें बल लें , जिससे आपकी अच्छी भावनाओं को प्रोत्साहन मिले वह आपके जीवन की एक उपलब्धि बनेगी ।
 ऐसी सोच अपने भीतर विकसित करनी चाहिये । कहते हैं नालियों का पानी जब गंगा में मिल जाता है तो गंगा जल बन जाता है लेकिन गंगा जल जब नाली में आ जाता है तो गंदा जल बन जाता है संगति के इस महत्व को समझने के लिये मैं समझता हूँ इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं होगा ।
मैंने ये देखा है कि अनेक लोगों की मनोवृत्तियों में व्यापक बदलाव आया । साधु संतों के सान्निध्य में आने के बाद उनकी मनोवृत्तियों में व्यापक बदलाव आया ।
साधु संतों के सान्निध्य में आने के बाद उनकी मनोवृत्ति बदलती है । जो व्यक्ति कभी क्रोध की मूर्ति होता है वही व्यक्ति क्षमा की मूरत भी बन जाता है । उसके अंदर वैसा धैर्य , वैसी सहनशीलता , वैसी सहिष्णुता , संवेदना , सद्भावना को जगने में देर नहीं लगती ।
 ये हमारे मन की बात है । हम कहते हैं कि सदगुरु के सान्निध्य से व्यक्ति का जीवन परिवर्तित हो जाता है हमने ये कहावत सुनी है कि पारसमणि के संसर्ग से लोहा सोना बन जाता है ।
 बंधुओं मैंने कभी पारसमणि नहीं देखी आपने भी नहीं देखी होगी ? कोई पारस मणि इस सभा में बैठे किसी भी व्यक्ति ने नहीं देखी होगी , सुनी सबने है , लेकिन संत कहते हैं नहीं इसे देखा भी जा सकता है और देखा ही क्या महसूस भी किया जा सकता है ।
जिस पारसमणि की चर्चा लोक में होती है वो बाहर की पारसमणि नहीं वो कुछ और पारसमणि है । सदगुरु पारसमणि है जो शिष्य रूप लोहे को अपना संस्पर्श देते ही सोना बना देते हैं । पारस का संस्पर्श को जाये तो जीवन सोना बन जायेगा सत्संगति की यही महिमा है साधुजनों की संगति में रहते ही व्यक्ति के जीवन की धारा अपने आप बदल जाती है ।

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