मन की दिशा हमारे हाथों में।

Spread the love

मन की दिशा हमारे हाथों में।

 सन्त कहते हैं कि हमारी मनोवृत्ति के यही दो पक्ष हैं । जैसे माह में दो लक्ष्य जीवन का | पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष । शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलायें दिनोंदिन बढ़ती हैं और अपनी निर्मल ज्योत्सना से पूरी पृथ्वी को रोशन कर देती हैं और कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की कलायें दिनोंदिन क्षीण होती हुई अमावस्या की रात्रि में काली रात के रूप में परिणत हो जाती हैं । माह में जैसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष हैं , वैसे ही ये दो पक्ष हमारे जीवन के भी हैं , हमारी चित्तवृत्ति के भी हैं ।
हमारे भीतर में एक कृष्ण पक्ष है वहीं हमारे भीतर में एक शुक्ल पक्ष भी है । हमारे भीतर का जो नकारात्मक पक्ष है , वह सब हमारे भीतर का कृष्ण पक्ष है । मन में क्रोध , ईर्ष्या , चिन्ता , विद्वेष , वैमानस्य , हिंसा , क्रूरता आदि जितनी नकारात्मक वृत्तियां हैं , ये सब हमारे चित्त के कृष्ण पक्ष हैं , जो दिनोंदिन हमारे आत्म गुणों को क्षीण करते हुये हमारी जिंदगी में कालुष्य भरते हैं , पाप का कलंक भरते हैं ।
इसके विपरीत क्षमा , प्रेम , आत्मीयता , विनय , सद्भाव , दया , करुणा , अहिंसा आदि की जितनी भी सकारात्मक भावनायें हैं , वे सब हमारे चित्त के शुक्ल पक्ष हैं , जो हमारे आत्मगुणों को प्रकट करके हमारी चेतना को रोशन करते हैं , हमारे जीवन को प्रकाशित करते हैं , हमारे अंतस में प्रकाश भरते हैं ।
संत कहते हैं कि ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम अपने भीतर की किस वृत्ति को प्रधानता देते हो , अपने भीतर की चित्तवृत्ति को समझो । जिस तरह की वृत्ति तुम्हारे भीतर प्रवाहित होगी , तुम्हारा संपूर्ण जीवन वैसा बनेगा । 
मनुष्य का जीवन मुनष्य के मन पर निर्भर है । ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य मनु की संतान है । मुझे नहीं पता कि किस की है ? जैसा हमारा मन , जैसी हमारी विचारधारा , वैसा संपूर्ण जीवन बनता है ।
हम अपने चित्त की धारा को जिस ओर प्रवाहित करते हैं , जिस दशा में आगे बढ़ाते हैं , हमारा संपूर्ण जीवन वैसा ही बनता है । शास्त्रकारों ने मनुष्य शब्द की व्युत्पत्ति करते हुये कहा है कि मनसा उत्कटा : मानवा : जो मन से जितना समृद्ध और परिपक्व है वह मनुष्य है ।
 वस्तुतः जितनी समृद्ध मानसिक शक्ति मनुष्य के पास है उतनी इतर प्राणियों के पास नहीं और उसकी यही शक्ति उसे पूरे प्राणी जगत में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है लेकिन मन की एक बड़ी विचित्रता है कि वह ऊपर भी चलता है और नीचे भी उतरता है । 
वह उत्कर्ष भी करता है और पतन भी करता है उससे
 उन्नति भी होती है और अवनति भी होती है । वह हमारा तारक भी है और मारक भी है । मन की दिशा के ऊपर है कि हम उसे किस दिशा में आगे बढ़ाते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *