जैसे नाम वैसी मनोवृत्ति।आध्यात्मिक ज्ञान

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जैसे नाम वैसी मनोवृत्ति।

 इस धरती पर वे लोग जिन्हें महापुरुष के पूजते हैं । चाहे श्री राम हुये , कृष्ण हुये , महावीर हुये । हम उन्हें सन्त , महात्मा के रूप में पूजते हैं और वे भी लोग जिन्हें हम दुरात्मा , दुष्ट और दुर्जन के रूप में आज मानते हैं , वे भी लोग इसी धरती पर उत्पन्न हुये चाहे वे रावण हों , कंस हों , मारीच हों , कोई भी हों ये सभी इस धरती पर उत्पन्न हुये लेकिन युग के अलग – अलग कालखण्डों में जन्मे ये अलग – अलग व्यक्ति हुये ।
 यदि हम अपने भीतर झाँककर देखें तो हमारी  ही भीतर राम हैं , हमारे ही भीतर कंस हैं और हमारे ही भीतर रावण हैं , हमारे ही भीतर कृष्ण और महावीर भी हैं हमारा ही रूप राम है मारीच भी हमारा ही अपना रूप है ।
ये सब हमारे चित्त की वृत्तियों के प्रतीक हैं । हम अपने चित्त की वृत्ति को जिस तरह से उभारते हैं , हमारा जीवन वैसा ही बन जाता है 
 वस्तुतः अतीत में राम और रावण कोई दो व्यक्ति हुये , कृष्ण और कंस कोई दो व्यक्ति हुये या मारीच और महावीर के रूप में कोई दो व्यक्ति हुये लेकिन सच्चे अर्थों में देखा जाये तो ये केवल व्यक्ति नहीं , ये दो प्रकार की मनोवृत्तियों के परिचायक हैं ।
रामायण की घटना जब मैं पढ़ रहा था तो एक प्रसंग आया कि सीता हरण के उपरान्त रावण ने अपने सारे हथकण्डे अपना लिये लेकिन सीताजी ने उसे स्वीकारने की बात तो बहुत दूर , उसकी ओर देखा तक नहीं । रावण हार गया और हारकर वह सीधे कुम्भकर्ण के पास पहुँचा ।
उसने कुम्भकर्ण से कहा कि भाई देखो सीता के बिना मेरा जीवन दूभर है , मैं सीता के बिना जी नहीं सकता । बहुत दिन हो गये सीता ने मुझे आज तक स्वीकारा नहीं और जब तक स्वीकारेगी नहीं मेरा जीना मुश्किल हो जायेगा कुछ तो उपाय बताओ ।
कुम्भकर्ण ने कहा कि भइया आप इतने नीतिवान , ज्ञानवान होने के बाद भी मेरे पास आये हो ? जब आपको पता है कि सीता श्री राम को छोड़कर अन्य किसी को स्वीकार नहीं कर सकती , तो आप राम का रूप धरकर सीता के पास क्यों नहीं चले जाते ?
आपके पास तो रूप बदल लेने की क्षमता है । स समय रावण ने जो जवाब दिया , वह बहुत महत्वपूर्ण है , उसने कहा कि अरे पगले ऐसा तो मैं कई बार कर चुका हूँ पर क्या बताऊँ जब – जब मैं राम का रूप धर करके वहां जाता हूँ तो मेरे मन में फिर वैसे दुर्भाव ही नहीं आते । 
 
मनुष्य की मनोवृत्ति को समझने के लिए यह बड़ा स्टीक उदाहरण है । रावण जैसा आततायी , दुराचारी व्यक्ति भी यदि राम का रूप धारण करता हैतो उसके भीतर से सात्विकता प्रकट होती है ।
                           श्री 108 प्रमाणसागर जी महराज
 
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