अंदर भरा सरोवर का रस। आध्यात्मिक ज्ञान।

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अंदर भरा सरोवर का रस।

 हमारे जीवन में माधुर्य हो । माधुर्य सबको प्रिय है , मधुरता सबको अच्छी लगती है । कटुता किसी को प्रिय नहीं होती । आपके मुंह में जब कोई मधुर चीज जाती है तो मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
रसगुल्ला मुंह में डालते हो तो चेहरा आनंद से खिल जाता है लेकिन अगर कोई कड़वी बेकारी मुंह में दे दे तो चेहरे की भंगिमा बिगड़ जाती है । तय है कि मधुरता सबको प्रिय है , कटुता किसी को प्रिय नहीं , कोई नहीं चाहता कि मेरे जीवन में किसी प्रकार की कटुता आये ।
 हमेशा मेरा जीवन माधुर्य से भरा रहे , ऐसा हर कोई चाहता है । लेकिन प्रश्न है कि जीवन  में माधुर्य कैसे प्रकट हो और हम अपने जीवन की कड़वाहट को कैसे दूर करें ? जैसे बाहर की कटुता किसी को पसंद नहीं है , संत कहते हैं कि वैसे ही भीतर की कटुता भी प्रिय नहीं होनी चाहिये ।
जैसे तुम बाहर के माधुर्य के प्रति सदैव सजग रहते हो , वैसे ही अपने भीतर भी मधुरता की सृष्टि के लिये प्रयत्नशील रहो । 
लेकिन मुश्किल यह है कि व्यक्ति बाहर के माधुर्य के लिये तो सब प्रकार के प्रयत्न करता है लेकिन भीतर की मधुरता का उसे कुछ अहसास और अवबोध ही नहीं है ।
व्यक्ति बाहर की कटुता से तो यथासंभव बचने की कोशिश कर लेता है लेकिन भीतर की कटुता को खत्म करने की कोई कोशिश नहीं करता है ।
बंधुओ यह भी विचित्र संयोग है कि बाहर का जो माधुर्य है , वह बाहर से आता है और बाहर की जो कुटता है , वह भी बाहर से ही आती है । बाहर का माधुर्य बाहर से आता है और बाहर की कटुता भी बाहर से ही आती है लेकिन संत कहते हैं कि भीतर का जो माधुर्य है और भीतर की जो कटुता है , उसका स्रोत एक ही है , भीतर के माधुर्यं का और भीतर की कटुता का स्रोत एक ही है , दोनों चीजें हमारी मनोवृत्ति की परिणतियाँ हैं ।
 हमारे ही चित्त से माधुर्य प्रकट होता है और हमारे ही चित्त से कटुता प्रकट होती है । अगर हम माधुर्य के पक्ष को पल्लवित करते हैं तो हमारे जीवन में मधुरता का रस प्रकट होता है और यदि हम कटुता के पक्ष को उभारते हैं तो जीवन में कड़वाहट घुल जाती हैं । दोनों चीजें हमारी अपनी ही परिणति हैं ।
                           श्री 108 प्रमाणसागर जी महराज
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