तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं । ज्ञान
तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं । दूसर हेतु तात कछु नाहीं ।।
सकल सुकृत कर बड़ फल एहू । राम सीय पद सहज सनेहू ।।
( अयोध्याकाण्ड 74/2)
राम राम बंधुओं, राम जी से वन साथ चलने की आज्ञा मिलने पर लक्ष्मण सुमित्रा माँ के पास आज्ञा लेने आते हैं और सब कुछ उन्हें बताते हैं । सुमित्रा जी इसे लक्ष्मण का सौभाग्य मानकर कहती हैं कि तुम्हारे भाग्य से ही राम वन जा रहें हैं जिससे तुम उनकी सेवा कर सको , वन जाने का और कोई कारण नहीं है । सब पुण्यों का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि श्रीसीताराम जी के चरणों में स्वाभाविक प्रेम हो ।
मित्रों , हमें आपको अपने पुण्य बढ़ाने की ज़रूरत है कारण राम जी के चरणों में हमारा सहज प्रेम नहीं है । हमें आपको सबको राम जी से प्रेम करने के लिए कहा जाता है । परंतु जब हमारे सत्कर्म बढ़ेंगे तो राम जी के चरणों में हम स्वभावत: सहज ही प्रेम करने लगेंगे अतएव सत्कर्म करें ,सत्संग करें , राम संग करें 🚩🚩🚩
भव सागर चह पार जो पावा । राम कथा का कहँ दृढ़ नावा ।।
बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा । श्रवन सुखद अरू मन अभिरामा ।
राम राम बंधुओं, पार्वती जी को राम कथा सुनाने के बाद शिव जी कहते हैं कि अब आपको मैं क्या सुनाऊँ । पार्वती जी कहती हैं कि मैं पूर्णतः संतुष्ट हूँ और अब मुझे मोह नहीं रह गया है । राम कथा तो उन लोगों के लिए मज़बूत नौका के समान है जो संसार सागर पार होना चाहते हैं ।राम जी के गुण तो बिषयी लोगों के कानों को भी सुखकर तथा मन को आह्लादित करता है ।
मित्रों, श्रीराम कथा इस संसार सागर को आसानी से पार करने के लिए सबसे मज़बूत आधार है । इस आधार को जिसने भी अपनाया , संसार सागर की कठिनाई रूपी लहरें उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ नहीं पाती हैं और वह आसानी से उस पार चला जाता है अस्तु राम कथा रूपी नौका पर चढें व उस पार उतरें अतएव जय राम कथा , जय श्रीराम कथा 🚩🚩🚩🚩
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान ।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ।।
( अरण्यकांड, दो. 35)
जय सियाराम बंधुओं, सीताजी को खोजते हुए राम जी शबरी माँ के आश्रम पहुँचें हैं । शबरी माँ राम जी से पूछती हैं कि मैं आपकी किस तरह से अस्तुति करू । राम जी कहते हैं कि जीव से मैं तो केवल भक्ति का संबंध मानता हूँ । आगे नौ प्रकार की भक्ति बताते हुए राम जी कहते हैं कि मान रहित होकर गुरू जी की सेवा करना तथा कपट छोड़कर मेरे गुणों का गान करना चौथी भक्ति है।
मित्रों , संसार का सारा सामान हम अपना मान बढ़ाने के लिए ही तो जुटाते हैं और जब तक अपने मान का हमें भान रहेगा तब तक हम आप अमान नही हो सकते हैं इसी तरह हम कपटयुक्त राम गुणगान करते हैं ।जीवन में अमानता तो समर्पण से आती है और समर्पण निष्कपटता से आती है अतएव अपने को राम जी को अर्पित करें , समर्पित करें अस्तु जय राम जय राम जय जय राम 🚩🚩🚩
जासु अंस उपजहिं गुनखानी । अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी ।।
भृकुटि बिलास जासु जग होई । राम बाम दिसि सीता सोई ।।
( बालकांड 147/2)
राम राम बंधुओं, मनु व शतरूपा जी तप करते हैं । ब्रह्मा , बिष्णु महेश उनके पास कई बार आते हैं व उनसे वर माँगने को कहते हैं । इस पर मनु जी कहते हैं कि हम प्रभु के उस रूप को अपने नेत्रों से देखना चाहते हैं जो मुनियों व शिव जी के मन में बसे हुए हैं । इस पर श्रीभगवान प्रकट होते हैं ।उनके साथ जिनके अंश मात्र से गुणों की खान रूप में अगनित लक्ष्मी , पार्वती व ब्रह्मानी उत्पन्न होती हैं तथा जिनके भौंह के इशारे से जगत की रचना हो जाती है वही सीता जी राम जी के बाम भाग में स्थित हैं, ऐसे श्रीसीताराम जी प्रकट होते हैं ।ऐसे प्रभु के दर्शन मनु व सतरूपा को होते हैं ।
बंधुओं, ऐसे श्रीसीताराम जी को हम आप भी अपने नयनों से युगल रूप में देखें , अपने मन में बैठाए और अपनी धन्यता बढ़ाएँ अतएव सीताराम जय सीताराम 🚩🚩🚩
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा । बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ।
जासु नाम त्रय ताप नसावन । सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ।
( सुंदरकांड38/4)
राम राम बंधुओं, रावण को जब यह पता चलता है कि राम जी की सेना सागर तट पर आ चुकी है तब वह अपने दरबारियों से पूछता है कि क्या किया जाय। बिभीषण जी उसे समझाते हुए कहते हैं कि आप उनसे वैर त्याग दें । सारे जगत से द्रोह करने का पाप जिसे लगा हो , वह भी उनकी शरण में जाता है तो वे उसे अपना लेते है । जिसका नाम तीनों तापों का नाश करता है वे ही परमात्मा श्रीराम मनुष्य रूप में प्रकट हुए हैं ऐसा आप मान लें ।
मित्रों , राम जी तो हमें हर परिस्थिति में अपनाने के लिए तैयार हैं बस एकबार उनकी शरण में हमें आपको जाने की ज़रूरत है । राम शरण में गया जीव कभी निराश नहीं हुआ है न कभी ख़ाली हाथ लौटा है कारण राम जी तो जीव के हर प्रकार के संताप को समाप्त कर देते हैं अतएव अपने अपकर्मो का ध्यान किए बिना , जय राम शरण , रघुनाथ शरण 🚩🚩🚩
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very nice
Bahut badhiya