जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई । ज्ञान
~~ श्री हरि~~
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई । धन बल परिजन गुन चतुराई ।।
भगति हीन नर सोहइ कैसा । बिनु जल बारिद देखिअ कैसा ।।
( अरण्यकांड 34/3)
राम राम बंधुओं, कबंध का उद्धार कर राम जी सीताजी को खोजते हुए शबरी के आश्रम आते हैं । स्वागत, सेवा करने के बाद शबरी जी राम जी से पूछती हैं कि किस प्रकार से मैं आपकी स्तुति करूँ ।राम जी कहते हैं कि मैं केवल भक्ति का संबंध मैं मानता हूँ । जाति ,कुल ,धर्म ,प्रतिष्ठा,, धन,बल , कुटुम्ब,गुण व चतुरता आदि होने पर भक्ति से हीन मनुष्य वैसा लगता है जैसे जलहीन बादल दिखाई देता है ।
मित्रों , यदि आपके पास सबकुछ है पर भक्ति नहीं है तो सबकुछ महत्वहीन है कारण भक्ति हमें राम जी से जोड़ती है जबकि भक्तिहीनता संसार में उलझाती हैं । राम जी से जुड़ने पर जीव सुलझ जाता है , समझदार हो जाता है ,शोभा को पाता है व राम प्रिय हो जाता है ।अस्तु संसार प्रिय न होकर राम प्रिय बने , राम भक्ति करें अतएव श्रीराम जय राम जय जय राम 🚩🚩🚩
डरु न मोहि जग कहिहि कि पोचू परलोकहु कर नाहिन सोचू ।।
एकइ उर बस दुसह दवारी । मोहि लगि भे सिय राम दुखारी ।।
( अयोध्याकाण्ड 181/3)
राम राम बंधुओं, दशरथ जी के परलोकगमन के बाद भरत जी ननिहाल से बुलाए जाते हैं । सभी लोग उन्हें पिता वचन के अनुसार अयोध्या पर राज करने को कहते हैं । भरत जी कहते हैं कि मुझे इसका डर नहीं है कि संसार मुझे बुरा कहेगा या मेरा परलोक बिगड़ेगा । मेरे ह्रदय में तो बस एक दु:सह दुख की अग्नि धधक रही है कि मेरे कारण श्रीसीताराम जी दुखी हुए ।
मित्रों , राम जी धर्म हैं , राम धर्म का पालन कर ही हम उनकी अनुकूलता प्राप्त कर सकते हैं ।परोपकार व दयालुता ही राम धर्म है ।इसका अपने जीवन में पालन कर हम आप भी राम धर्म का निर्वाह कर सकते हैं व राम कृपा प्राप्त कर सकते हैं अतएव अपना प्रत्येक कार्य राम धर्म के अनुकूल करें अस्तु सीताराम जय सीताराम ।
सुखी मीन जे नीर अगाधा ।
जिमि हरि सरन न एकउ बाधा ।।
( किष्किंधाकांड 13/1)
राम राम बंधुओं , सीताजी को खोजते हुए परमात्मा की सुग्रीव से मित्रता होती है । सुग्रीव को राज देकर वर्षा ऋतु में परमात्मा लक्ष्मण जी के साथ प्रवर्षन पर्वत पर रह रहें हैं । लक्ष्मण जी को वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए राम जी कहते हैं कि जो मछलियाँ अगाध जल में हैं वे उसी प्रकार से सुखी हैं जैसे परमात्मा की शरण में रहने पर कोई बाधा नहीं रहती है ।
मित्रों, हम आप भी तो सुखी होना चाहते हैं पर हमने अपनी या जगत की शरण ले रखी है तो परिणाम सामने है ।केवल परमात्मा की शरण ही हमें हर प्रकार के जंजाल से मुक्ति दिलाकर सुखी कर सकता है तो चलें , जय राम शरण , जय राम शरण 🚩🚩🚩
तामस बहुत रजोगुन थोरा । कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा ।
काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही । रघुपति चरन प्रीति अति जाही ।।
( उत्तरकांड 103/ 5-7)
राम राम बंधुओं , श्रीराम कथा सुनाने के बाद काकभुसुंडि जी ने गरूड़ महराज को अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुए कलियुग के बारे में बताते हैं । वे कहते हैं कि कलियुग में तामस भाव अधिक और रजोगुण कम होता है जिस कारण चारों तरफ़ बिरोध ही विरोध दिखाई देता है परंतु जिन्हें रघुनाथ जी के चरणों से प्रीति होती है उन्हें यह युग काल प्रभावित नहीं कर पाता है ।
मित्रों , जिस तरह राम जी समय व काल से परे व अप्रभावित हैं उसी तरह राम प्रेमियों को भी काल विशेष प्रभावित नहीं कर पाता है ।अस्तु इस कलिकाल के दोषों से बचना है और एकरस रहना है तो राजा राम जी का साथ करें अथ जय जय राम ,जय जय श्रीराम ।
परहित बस जिन्ह के मन माहीं । तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ।।
तनु तजि तात ज़ाहु मम धामा । देउँ काह तुम्ह पूरन कामा ।।
( अरण्यकांड 30/5)
राम राम बंधुओं , सीताजी का हरण हो चुका है । रावण को रोकने के प्रयास में जटायु जी घायल हो जाते हैं । राम जी सीता जी को खोजते हुए जटायु के पास पहुँचते हैं , जटायु जी सब बताते हैं और राम दर्शन पश्चात शरीर छोड़ना चाहते हैं । राम जी कहते हैं कि जिनका मन दूसरों का हित करने में लगा रहता है उनके लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है । आप इस शरीर को छोड़कर मेरे धाम जाइए, मैं आपको क्या दूँ, आप तो सबकुछ पा चुके हैं ।
मित्रों , जो भी राम कार्य ( परमार्थ )में लगेगा , वह इस जगत में सब कुछ पा सकता है। जो राम कार्य में लगता है उसे माँगना नहीं पड़ता है वह स्वत: ही सब कुछ पा जाता है अस्तु राम काज , परमार्थ में लगें अतैव सीताराम जय सीताराम।
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