ईश्वर उपासक के लक्षण। आध्यात्मिक ज्ञान
ईश्वर उपासक के लक्षण ।
१. सम्पूर्ण दिन ईश्वर के साथ सम्बन्ध बनाये रखना ।
२. समस्त संसार का ( अपने शरीर , मन , बुद्धि आदि सहित ) निर्माता , पालक , रक्षक ईश्वर को मानना ।
३. वेद तथा वेदानुकूल ऋषिकृत ग्रन्थों पर अत्यन्त श्रद्धा रखना ।
४. ईश्वर – जीव – प्रकृति ( वैतवाद ) के स्वरूप को यथार्थ रूप में जानना ।
५. संसार के विषय भोगों में चार प्रकार का दु : ख अनुभव करना ।
६. विषय भोगों में सुख नहीं लेना अपने मन इन्द्रियों पर अधिकार होना ।
७. ईश्वर प्रदत्त साधनों का ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल ( धर्म पूर्वक ) साधक के रूप में , उचित मात्रा में उपयोग करना ।
८. फल की आशा से रहित ( तीन एषणाओं से रहित ) निष्काम भावना से कर्मों को करना ।
९ . इच्छा का विघात , वियोग , अपमान , विश्वासघात , असफलता , अवसर चूकना इत्यादि स्थितियों में चिन्तित , भयभीत , क्षोभयुक्त , दु : खी न होना ।
१०. समस्त संसार को ईश्वर में डूबा हुआ देखना ।
११. दैनिक क्रिया – व्यवहारों में ( विचारना , बोलना , लेना – देना , समझना समझाना आदि में ) अत्यन्त सावधान रहना ।
१२. आध्यात्मिक अविद्या ( अनित्याशुचि आदि ) से रहित होना और विद्या से युक्त होना ।
१३. समस्त अविद्याजनित संस्कारों को दबाये रखने में समर्थ होना ।
१४. यमों का पालन सार्वभौम महाव्रत के रूप में करना , चाहे मृत्यु भी क्यों न आ जाये ।
१५. हर समय प्रसन्न , सन्तुष्ट , निर्भय , उत्साही , पुरुषार्थी और आशावादी बने रहना ।
१६. शरीर , बल , विद्या आदि उपलब्धियों का एषणाओं के लिये प्रदर्शन न करना ।
१७. किसी के द्वारा बताये जाने पर असत्य का त्याग और सत्य का ग्रहण तत्काल करना ।
१८. धन , बल , कीर्ति आदि की प्राप्ति के प्रलोभन में आदर्शों का त्याग या उनके साथ समझौता कदापि न करना ।
१ ९ . शुद्ध ज्ञान , शुद्ध कर्म और शुद्ध उपासना इन तीनों का समायोजन करके चलना ।
२०. गंभीर , मौनी , एकान्तसेवी , संयमी , तपस्वी होना ( विशेषकर प्रारम्भिक काल के लिये ) ।
२१. देश , जाति , प्रान्त , भाषा , मत , पन्थ , रूप – रंग , लिंग आदि भेद – भावों से रहित सब से प्रेम करने वाला सब का हितैषी , दयालु , कल्याण करने वाला होना ।
२२. योग दर्शन , उपनिषद् वा अन्य आध्यात्मिक ग्रन्थों में आये हुए सत्य सिद्धान्तों को ठीक समझकर उनका आचरण करना ।