जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 16
वाणी – विवेक
डंडे और पत्थरों से हड्डियाँ टूट जाती हैं , लेकिन शब्दों से अक्सर रिश्ते टूट जाते हैं ।
जिसके कहने से पछताना पड़े , वह बात मत कहो ।
शब्द यदि सही समय पर , सही बात के लिए , सही तरीके से प्रस्तुत हो तो सफलता लगभग तय हो जाती है ।
पशु नहीं बोलने से दुःख पाता है , आदमी बोलने से दुःख पाता है ।
यदि तुम एक बार बोलने से पहले दो बार सोच लेते हो तो तुम अच्छा बोलोगे ।
जो नपा – तुला बोलता है , उसके बोल दुनिया हमेशा याद रखती है ।
बहुत बोलने वाले व्यक्ति का लोग विश्वास नहीं करते ।
जो बोलता है वह फसल बोता है , जो सुनता है वह फसल काटता है ।
पैर फिसलने की अपेक्षा जुबान फिसलने पर संभलना ज्यादा मुश्किल है ।
सुखद मधुर वचन व्यक्त करने वालों के पास दु : खद दारिद्र्य कभी नहीं फटकता ।
जो । झूठ बोलकर ठगता है , कटु बात बोलकर जी दु : खाता है ,
चुगली करके परस्पर प्रेम को तुड़वाता है , निरर्थक बात करके समय नष्ट करता है ,
वह वाणी को मैला करता है । वाणी इन चार प्रकार के मैल से बचेगी तो अपने आप पवित्र हो जायेगी ।
जब भी बोलें , धीमे और धैर्य से बोलें ; आपकी वाणी औरों के दिलों में प्यार और जिज्ञासा का झरना बहाएगी ।
अपशब्दों का प्रयोग करने का अर्थ यह है कि आपमें इतनी भी बुद्धि नहीं है कि आप अन्य शब्दों का चयन कर सकें । हर एक बात मीठी भाषा में कही जा सकती हैं ।
अगर हम असभ्यता बरतते हैं तो अपना ही गला काट लेते हैं ।
किसी के हलकेपन को बोलना , देखना , सुनना हलकेपन का परिचय है ।
श्रीमंत साधनों से बोलते हैं , संत साधना से बोलते हैं ।
विकास
स्कूल में दाखिला लिया तब बुद्धि मंद थी । कॉलेज से डिग्री पाकर जब बाहर निकले तब बुद्धि वक्र बन गई !
इस प्रगति को ‘ विकास ‘ का नाम दें या ‘ विनाश ‘ का विकास दे ,
पर विश्राम न दे , ऐसे विज्ञान के अंधभक्त बनने से पहले लाख बार विचार करना ।
विकास का एकमात्र कारण प्रेम है । विनाश का एक मात्र कारण अहंकार है ।
विकास के सोपान में कोई भी पायदान अंतिम नहीं होता । स्वयं को बेहतर बनाना एक अंतहीन क्रिया है ।
विचार
सेना के हमले को तो रोका भी जा सकता है , पर विचारों के हमले को नहीं ।
मनुष्य के कर्म उसके विचारों के सर्वोत्तम व्याख्याता है ।
विचार ही कार्य का मूल है । विचार गया तो कार्य गया ही समझो ।
हमारे विचारों का स्तर ही हमारी प्रसन्नता का स्तर निर्धारित करता है ।
कोयल डाली पर से किसी भी क्षण उड़ जाती है , भैंस कीचड़ में से बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेती ।
शुभ विचार लम्बे समय तक टिकता नहीं ,
अशुभ विचार मन में से हटने का नाम ही नहीं लेता ।
कैसी दयनीय दशा है । मन में दूषित विचार की लहर उठते ही उसकी दिशा बदल दीजिए वरना भीतर की दिव्यता और पवित्रता खण्डित हो जाएगी ।
जिस बिन्दु पर आप सोच सकते हैं , ध्यान रखिए , आप उसे पूरा भी कर सकते हैं ।
संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है और न शत्रु ।
तुम्हारे अपने विचार ही शत्रु और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी हैं ।
अच्छे विचार और अच्छे कर्म , मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं ।
विडम्बना
लोक जीवन से विमुख होकर निर्वाण की कामना विडम्बना है ।
आज ही करने जैसा प्रेम हमें करना नहीं है और कभी न करने जैसा युद्ध आज ही करना है ! कैसी विडम्बना है ।
खुद के पास जो चीज है , उससे इन्सान ‘ सुखी ‘ नहीं है , पर वही चीज यदि उससे छिन जाती है तो वह ‘ दुःखी ‘ हो जाता है । विडम्बना है ना !
आँखें हैं नहीं हमारे पास और कर रहे हैं हम इन्द्रधनुष के वर्णन के सामने दलीलबाजी !
बुद्धि के नाम पर कुछ है नहीं हमारे पास और कर रहे हैं हम परमात्मा के वचनों का पोस्टमार्टम ! ‘
जिस बंगले को हमने बांधा है उसी बंगले से आखिर में हमें बांधकर निकाला जायेगा ।
कैसी विडम्बना हैं ! चुनाव जीतने में पूरी ताकत , पूरा श्रम , पूरा पैसा लगायेंगे , न करने योग्य कार्य भी करेंगे ,
परन्तु किसी दीन – दुःखी , दुर्बल के दुःख को दूर करने में शक्ति , श्रम व सम्पत्ति छिपायेंगे यह कैसी विडम्बना है ।
लोग जीने की तैयारी में ही लगे रहते हैं , भले ही जाने का समय आ जाये ।
विद्या
जिसके द्वारा बन्ध , मोक्ष , गति , आगति एवं आत्मस्वरूप का ज्ञान हो , वही विद्या दुःख से विमुक्त करने वाली है । कर्म वही श्रेष्ठ है ,
जिससे आत्मा न बन्धे व विद्या वही श्रेष्ठ है , जो मुक्त करे । जिसे न राजा ले सकता है , न चोर ले सकते हैं और न जिसका हिस्सा भाई ले सकते हैं , तथा जो खर्च करने से बढ़ता है ,
ऐसा विद्या – धन सभी धनों में श्रेष्ठ है । विद्या मनुष्य का रूप है , प्रच्छन्न गुप्त धन है , यश एवं सुख देने वाली है तथा विदेश में स्वजन तुल्य है ।
राजाओं द्वारा पूजित धन नहीं , अपितु विद्या ही है । विद्या के बिना मनुष्य पशु के समान है ।
वही विद्या है जो अभिमान को दूर करे , वही लक्ष्मी है जो याचकजनों पर बरसती हो ,
वही बुद्धि है जो धर्म का अनुगमन करती हो । विनय , विवेक , विचार , वैराग्य , विरक्ति और वीतराग – विज्ञान ; इनका जिसमें समावेश है वह विद्या है । प्रतिभाहीन विद्या , कायर का बल और कंजूस का धन किसी के काम नहीं आते ।
विनय
विनम्रता के मार्ग से ही विपत्तियों के दलदल को पार किया जा सकता है ।
किसी शान्त और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए ,
आपको लगेगा कि आपका घमण्ड निश्चय ही त्यागने जैसा है ।
झुकने वाले के सामने दुनिया झुकती है । झुकाने वाले को दुनिया उखाड़कर फेंकती है ।
, बिना विनय के विजय नहीं टिकती । नगीने नरम सोने में ही लगते हैं ।
जीवन की गाड़ी में विनम्रता का ग्रीस लगाइये , गाड़ी बड़े आराम से चलेगी ।
नम्रता , प्रेमपूर्ण व्यवहार और सहनशीलता से मनुष्य तो देवता भी वश हो सकते हैं ।
आँधी के सामने अकड़ के खड़ा ताड़ का वृक्ष नष्ट हो जाता है जबकि वक्त के साथ झुकने वाली लताएँ सुरक्षित बनी रहती हैं ।
विनम्रता और श्रद्धा के सामने तर्क नहीं पेश किये जाते ।
जिंदगी की स्पर्धा में विनयशीलता अक्सर प्रतिभा को पीछे छोड़ देती है ।
विद्वत्ता अगर विनम्रता से आबद्ध न हो तो वह अहंकार पैदा करती है ।
विपत्ति
विपत्तियाँ मनुष्य को न दुर्बल बनाती है न सबल , वे तो केवल यह प्रकट करती हैं कि वह क्या है ?
जिसने बुरे दिन नहीं देखे , वह अच्छे दिनों में भी परेशान रहता है ।
संकटों से घृणा की जाए तो वे बड़े हो जाते हैं ।
विपत्ति में सभी करुणा , दया और शान्ति की स्तुति करते हैं ।
जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है , उस पर विपतियाँ भी आती हैं ।
संकट , कमजोर मन वाले को तोड़ देता है ।
बलवान मन वाला संकट के समय में ‘ रिकॉर्ड तोड़ देता है ।
समस्याएँ चाहे जैसी हों , घबराइए नहीं , इन्हें परीक्षा समझकर पास कीजिये
समस्याएं चाहे जैसी हो , घबराइए नहीं , इन्हें परीक्षा समझकर पास कीजिये ।
समस्या को देखकर घबरा जाने से काम के साथ दिमाग का संतुलन भी बिगड़ जाता है ।
मार्ग में आने वाला हर एक विघ्न उन्नति की सीढ़ी के समान है ।
कठिनाइयाँ हमें आत्मज्ञान कराती हैं , वे हमें शिक्षा देती हैं । कि हम किस मिट्टी के बने हैं ।
कठिनाइयाँ भगवान का सन्देश होती हैं , उनका सामना करते समय हमें भगवान के विश्वास के रूप में , भगवान से अभिनन्दन में उनका सम्मान करना चाहिये ।
समस्याएँ हमें कुछ सीखने और विकास करने का अवसर देती हैं । कष्ट जीवन की कसौटी है ।
प्रतिकूलता में ही परीक्षा होती है । संसार में दुर्दशा प्राप्त होने पर व्यक्ति की क्षुद्रजन भी बुराई करने लग जाते हैं ।
हाथी के कीचड़ में निमग्र होने पर मेंढक भी उसके सिर पर चढ़ जाते हैं । घाव होने पर उसमें बार बार आघात लगता है ,
अन्न के अभाव में जठराग्नि बढ़ जाती है , विपत्ति में शत्रु बढ़ जाते हैं ।
मनुष्य के बुरे दिन आने पर ये सब होते हैं । जीवन की कठिनाइयों से भागो मत । अभिमुख होकर उनका सामना करो ।
क्रोध आया तो क्रोध को देखो , भय आया तो भय को देखो । इस प्रकार यदि देखना आ गया तो इनका शमन होने लगेगा ।
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