जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 15

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जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                           मृत्यु 

जीवन – संध्या की तरफ जाते हुए डरना मत , मृत्यु तो दिन के बाद रात का आराम है ।
अन्तिम समय में पद – प्रतिष्ठा , धन – धरती , रूप – रुपैया , सत्ता सम्पत्ति कोई भी साथ देने वाले नहीं हैं ।
टूटे हुए पुल जुड़ सकते हैं , फटा हुआ कपड़ा सीया जा सकता है , टूटा हुआ गहना जोड़ा जा सकता है , परन्तु टूटी हुई आयुष्य की डोरी को कोई जोड़ नहीं सकता ।
जीवन का बीता हुआ प्रत्येक क्षण श्मशान की ओर बढ़ा हुआ एक कदम है ।
सबको वहीं पहुँचना है , कोई पहले तो कोई बाद में । जगत को प्रकाश देने वाला सूर्य भी जब 5 बजे ठण्डा हो जाता है तो आप और हम आखिर ठण्डे हो जाये तो कौनसी बड़ी बात है ।
जवानी डेरा है , अंधाधुंध है । बुढ़ापा बेहोशी है । बेशक ! मौत पूर्ण विराम है ।
 शुभ व श्रेष्ठ प्रसंगों के लिए अशुभ मुहूर्त ‘ बाधक बनते हैं ,
परंतु मृत्यु के लिए वे कभी बाधक नहीं बनते , यह हमेशा याद रखना ।
संपूर्ण संग्रहों का अन्त विनाश है , भौतिक उपलब्धियों का अन्त पतन है ,
संयोग का अन्त वियोग है , जीवन का अन्त मरण है ।
करेंगे यह निश्चित नहीं है , पर मरेंगे यह निश्चित है ।
मरना तो है ही , अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो ।
मृत्यु को महोत्सव बनाना हो तो जीवन का एक – एक क्षण जागृति में व्यतीत करना होगा ।
मृत्यु अपरिहार्य है , इसलिये इसका स्वीकार अनिवार्य है ।
व्यक्ति धन , धरती , सत्ता , सुंदरी को भले छोड़ना न चाहे , पर मृत्यु उससे सब कुछ छुड़वा देती है ।
आपके मरने पर अगर पूरा बाजार बंद रहा तो भी कोई फायदा नहीं , पूरा नगर बंद रहा तो भी कोई उपयोग नहीं , अगर आपने मरने के पहले दुर्गति के द्वारा बंद नहीं करवाये ।
मौत और मोक्ष में इतना ही अंतर है कि जो बार बार आये वह मौत है और जो एक बार आए वह मोक्ष है ।
जिस प्रकार यहाँ लोक में सिंह मृग को पकड़कर ले जाता है , इसी प्रकार अंत समय में मृत्यु भी मनुष्य को निश्चय ही परलोक में ले जाती है । इस दुनिया में लोग मरते बहुत जल्दी हैं , अग्नि संस्कार ही देर से होता है ।

                     मैत्री

 बनाना ही है तो पुल बनाइए , दीवारें खड़ी करेंगे तो अकेले ही रह जायेंगे ।
 दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है । जीते जी आप जिनके न हो पाये , कम से कम मरते वक्त तो उनके जरूर हो जाइये ।
अपने शत्रुओं से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि उन्हें अपना मित्र बना लें ।

                         मौन 

झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है ।
मौन के वृक्ष पर शान्ति के फल लगते हैं ।
वाणी चाँदी है , मौन सोना है । वाणी पार्थिव है , पर मौन दिव्य है ।
जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो , तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो ।
योग्यता केवल वही व्यक्ति बेकार नहीं है , जो बैठा रहता है , बल्कि वह भी बेकार माना जाएगा , जिसकी योग्यता का पूर्ण लाभ नहीं लिया जाता ।
बगैर भरोसा और जिम्मेदारी के योग्यता एक बोझ होती है ।
किसी भी वस्तु की सुन्दरता आपकी मूल्यांकन करने की योग्यता में छिपी हुई है ।

                        लगन 

अचल निष्ठा व लगन ही महान कार्यों की जननी है ।
 जो सच्ची लगन से कार्य करते हैं , उनके विचारों , वाणी और कर्मों पर आत्मविश्वास की छाप दिखाई देती है ।
हम काम को पूरी लगन से करेंगे तो कभी भी पछताना नहीं पड़ेगा ।
लगन से ज्ञान मिलता है । लगन के अभाव में ज्ञान खो जाता है ।
लक्ष्य डाक टिकट की तरह बनिये ।
जब तक मंजिल पर न पहुँच जायें उसी चीज पर जमे रहिये ।
लगन से ज्ञान मिलता है । लगन के अभाव में ज्ञान खो जाता है ।

                         लक्ष्य

 डाक टिकट की तरह बनिये । जब तक मंजिल पर न पहुँच जायें उसी चीज पर जमे रहिये ।
 याद रखिए , कछुआ अपनी रफ्तार के कारण नहीं जीतता , वरन् लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठता ही उसकी सफलता का राज है ।
स्वयं को कछुए की तरह बनाइये जो भले ही धीमे चले , पर लगातार लक्ष्य की ओर बढ़ता ही रहे ।
जीवन का लक्ष्य बनाइये । बगैर लक्ष्य का व्यक्ति करता तो बहुत है पर पाता कुछ नहीं ।
घड़ी का पेण्डुलम हिलता -डुलता तो खूब है , पर पहुँचता कहीं नहीं ।
ध्येय जितना महान् होता है , उसका रास्ता उतना ही लंबा और बीहड़ होता है ।
एक उचित ध्येय ही व्यक्ति के जीवन को कोई अर्थ देता है । अगर हमारे सामने कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं तो हम अपना जीवन बिना किसी उद्देश्य के भटकने में खर्च कर देंगे और कहीं भी नहीं पहुंचेंगे ।
शानदार रास्ते उसी जीवन के आगे खुलते जाते हैं , जिसका कोई नक् षा हो , जिसका कोई मिशन हो और जिसका कोई लक्ष्य हो ।
 पानी के बिना नदी बेकार है , अतिथि के बिना आँगन बेकार है , स्नेह न हो तो भाई – बंधु बेकार है और जीवन में कोई लक्ष्य न हो तो पतवारविहीन नाव की तरह वह भी बेकार है ।
 स्पष्ट आदर्श , निश्चित लक्ष्य व दृढ़ उद्देश्य जीवन को सृजनशील और कुशल बनाते हैं । वे हमारे प्रयासों को एकसूत्र में बांधकर लक्ष्य पर पहुँचा देते हैं ।

                         लोभ

 यदि कैलाश पर्वत के समान सोने – चाँदी के असंख्य पर्वत हों , फिर भी लोभी मनुष्य को उन पर्वतों से भी कुछ संतोष नहीं होता ।
निश्चय ही इच्छा आकाश के समान अनन्त है ।
 ‘ लाभ ‘ का स्थान जब से लोभ ‘ ने ले लिया है तब से ‘ शुभ ‘ का स्थान ‘ अशुभ ‘ ने छीन लिया है ।
कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है ।
दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है ।
लोभी व्यक्ति सारा संसार प्राप्त कर लेने पर भी भूखा रहता है ।

                        वर्तमान 

भविष्य को वर्तमान खरीदता है ।
वर्तमान का आनन्द वही उठा सकता है , जिसे भविष्य का भय न हो ।
आज को इस तरह जिएँ कि वे कल के लिए यादगार बन जाए ।
 वर्तमान में हमारा जीवन प्रभु और पशु इन दोनों के बीच में है ।
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