स्वस्थ जीवनके लिये धारण करने योग्य 51 बातें।

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 स्वस्थ जीवनके लिये धारण करने योग्य 51 बातें।

राम राम बंधुओ आइए जाने हम स्वस्थ जीवन के लिए धारण करने 51 बाते जिससे हमारे जीवन में नया सुधार आए ।

1- रोज प्रातःकाल सूर्योदयसे पहले उठो । उठते ही भगवान्‌को प्रणाम करो , फिर हाथ – मुँह धोकर उष : पान करो । ठंडे जलसे आँखें धोओ ।

2- पेशाब- पाखानेकी हाजतको कभी न रोको पेटमें मल जमा न होने दो ।

3 – रोज दतुअन करो ; भोजन करके हाथ , मुँह , दाँत अवश्य धोओ ।

4 – प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके सूर्यको अर्घ्य दो ।

5 – दोनों समय ( प्रातः और संध्या ) नियमपूर्वक श्रद्धा के साथ भगवत्प्रार्थना या संध्या करो ।

6 – हो सके तो प्रातः काल शुद्ध वायुका सेवन अवश्य करो ।

7- भूखसे अधिक न खाओ , जीभके स्वादके वशमें न होओ ; पवित्रतासे बना हुआ— पवित्र कमाईका अन्न खाओ ; किसीका भी जूठा कभी न खाओ , न किसीको अपना जूठा खिलाओ , मांस – मद्यका सेवन कभी न करो ।

8- भोजनके समय जल न पीओ , या बहुत थोड़ा पीओ ।

9- पान , तंबाकू , सिगरेट , बीड़ी , चाय , काफी , भाँग , अफीम , गाँजा , चरस , ताश , चौपड़ , शतरंज आदिका व्यसन न डालो ; दवा अधिक सेवन न करो । पथ्य , परहेज , संयम , युक्ताहार – विहारका अधिक ध्यान रखो ।

10 – दिनमें न सोओ , रातमें अधिक न जागो , छ : घंटेसे अधिक न सोओ ।

11- नियमितरूपसे धर्मग्रन्थोंका कुछ स्वाध्याय अवश्य करो।

12- जूआ कभी न खेलो , बाजी न लगाओ , होड़ न बदो ।

13 – रोज नियमितरूपसे कम – से – कम 24,000 भगवान्के नामोंका जप अवश्य करो ।

14- संतोंके चरित्र और उनकी दिव्य वाणीका का अध्यन अवश्य करे।

15 – सिनेमा , स्त्रियोंका नाच आदि न देखो ।

16 – कपड़े सादे पहनो और साफ रखो , मैले न होने दो

; परंतु फैशनका खयाल बिलकुल न रखो । कपड़े बिगाड़कर भी न पहनो , बहुत कीमती कपड़े न पहनो ।

17 – हजामत और नख न बढ़ने दो , परंतु शौकसे दिनमें दो बार बनाओ भी नहीं ।

18 – अपने शरीरको सुन्दर दिखलानेका प्रयत्न न करो ।

19- किसी भी हालतमें यथासाध्य उधार न लो , । उधार लेकर खर्च करनेसे आदत बिगड़ जाती है ; जबतक उधार मिलता है , खर्च बढ़ता ही जाता है ; पीछे बड़ी कठिनाई और बेइज्जती होती है ।

20- तकलीफ सहकर भी आमदनीसे कम खर्च करो , अधिक खर्च करनेवालों या अमीरोंको आदर्श न मानकर मितव्ययी पुरुषों और गरीबोंकी ओर ध्यान दो । अन्न मितव्ययी पुरुष आमदनीमेंसे कुछ बचाकर अपनी ताकतके अनुसार दुःखियोंकी सेवा कर सकता है , चाहे एक पैसेसे ही हो ; खरी कमाईसे बचे हुए एक पैसेके द्वारा भी की हुई दीन – सेवा बहुत महत्त्वकी होती है । मितव्ययी पुरुषके बचाये हुए पैसे उसके आड़े वक्तपर काम आते हैं । जो भाँग , अधिक खर्च करता है , उसकी आदत इतनी बिगड़ जाती है कि वह बहुत अधिक आमदनी होनेपर भी एक पैसा , बचाकर दीनोंकी सेवा नहीं कर सकता । वह अपने खर्चसे ही परेशान रहता है और आमदनी न होने या कम होनेकी छः सूरतमें उसपर कष्टोंका पहाड़ टूट पड़ता है । मितव्ययी और अच्छी आदतवाले पुरुष ऐसी अवस्थामें दुःखी नहीं नवश्य हुआ करते ।

21- नौकरोंसे दुर्व्यवहार न करो , दुःखमें उनकी सेवा – सहायता करो । उनका तिरस्कार – अपमान कभी न करो । उनकी आवश्यकताओंका खयाल रखो और अपनी परिस्थितिके अनुसार उन्हें पूरा करनेकी चेष्टा करो ।

22- अपरिचित मनुष्यसे दवा न लो , जादू – टोना होड़ किसीसे भी न करवाओ ।

23- नोट दूना बनानेवाले , आँकड़ा बतानेवाले , सोना बनानेवाले , सट्टा बतलानेवाले लोगोंसे सावधान रहो , ऐसा होने करनेवाले प्रायः ठग होते हैं ।

24- किसी अनजानेको पेटकी बात न कहो , जाने हुए भी सबसे न कहो ; परंतु अपने सच्चे हितैषी बन्धुसे छिपाओ भी नहीं ।

25 – जहाँ भी रहो किसी वयोवृद्ध अनुभवी पुरुषको अपना हितैषी जरूर बना लो । विपत्तिके समय उसकी सलाह बहुत काम देगी ।

26- प्रेम सबसे रखो , परंतु बहुत ज्यादा सम्बन्ध स्थापित न करो । अनावश्यक दावतोंमें न जाओ और न दावत देनेकी ही आदत डालो ।

27- जो कुछ काम करो , अच्छी तरहसे करो । बिगाड़कर जल्दी और ज्यादा करनेकी अपेक्षा सुधारकर थोड़ा करना भी अच्छा है , परंतु आलस्य – प्रमादको समीप न आने दो ।

28- जोशमें आकर कोई काम न करो ।

29 – किसीसे विवाद या तर्क न करो , शास्त्रार्थ न करो । अपनेको सदा विद्यार्थी ही समझो । समझदारीका अभिमान न करो । सीखनेकी धुन रखो ।

30- मीठा बोलो , ताना न मारो , कड़वी जबान न कहो ; बीचमें न बोलो , बिना पूछे सलाह न दो ; सच बोलो , अधिक न बोलो , बिलकुल मौन भी न रहो ; हँसी – मजाक न करो ; निन्दा – चुगली न सुनो ; गाली न दो , शाप – वरदान न दो ।

31 – नम्र और विनयशील रहो , झूठी चापलूसी न करो , ऐंठो नहीं , मान दो , पर मान न चाहो ।

32- दूसरेके द्वारा अच्छा बर्ताव होनेपर ही मैं उसके साथ अच्छा करूँगा , ऐसी कल्पना न करो । अपनी ओरसे पहलेसे ही सबसे अच्छा बर्ताव करो , जो अपनी बुराई करे उसके साथ भी ।

33 – गरीबोंके साथ सहानुभूति रखो ।

34- किसी फर्ममें , संस्थामें या किसी व्यक्तिके लिये काम करो- नौकरी करो तो पूरी वफादारीसे करो । सदा तन – मन – वचनसे उसका हित – चिन्तन ही करते रहो ।

35- जहाँ रहो अपनी ईमानदारी , वफादारी , होशियारी , कार्य – कुशलता , मीठे वचन , परिश्रम और सचाईसे अपनी जरूरत पैदा कर दो । अपना स्थान स्वयं बनालो ।

36- प्रत्यक्ष लाभ दीखनेपर भी अनुचित लोभ न करो । अपनी ईमानदारीको हर हालतमें बचाये रखो । दूसरेका हक किसी तरह भी स्वीकार न करो । ईमान न बिगाड़ो ।

37- परायी स्त्रीको जलती हुई आग या सिंहसे । भी अधिक भयानक समझो । स्त्री सम्बन्धी चर्चा न करो , स्त्री – चिन्तन न करो , स्त्रियोंके चित्र न देखो , स्त्रियोंके सम्बन्धकी पुस्तकें न पढ़ो । यथासाध्य स्त्री – सहवास अपनी स्त्रीसे भी कम करो । यही बात स्त्रीके लिये पर – पुरुषके सम्बन्धमें है ।

38- आचरणोंको- चरित्रको सदा पवित्र बनाये रखनेकी कोशिश करो ।

39- बिना ही कारण मान – बड़ाईके लिये न तरसो । गरीबीसे न डरो , बेईमानी और बुरी आदतोंसे अवश्य भय करो ।

40- सदा अशुभ भावनाओंसे अपनेको न घिरा रहने दो उनको दूर भगाये रखो ।

41- जहाँतक हो क्रोध न आने दो । क्रोध आ जाय तो उसका कुछ प्रायश्चित्त करो ।

42- दूसरोंके दोष न देखो , अपने देखो । किसीको छोटा न समझो । अपना दोष स्वीकार करनेको सदा तैयार रहो ।

43- विपत्तिमें धैर्य और सत्यको न छोड़ो , दूसरेपर दोष न दो ।

44- अपने दोषोंकी डायरी रखो ; रातको उसे रोज देखो और कल ये दोष नहीं होंगे , ऐसा दृढ़ निश्चय करो ।

45 – वासना- कामनाओंको जीतनेकी चेष्टा करो । कामनापूर्तिकी अपेक्षा कामनाओंको जीतनेमें ही सुख है ।

46- अहिंसा , सत्य और दयाको विशेष बढ़ाओ ।

47- जीवनका प्रधान लक्ष्य एक ही है , यह दृढ़ नये निश्चय कर लो । वह लक्ष्य है- ‘ भगवान्‌की उपलब्धि ।

48 – विषयचिन्तन , अशुभचिन्तनका त्याग करके यथासाध्य भगवच्चिन्तनका अभ्यास करो ।

49 – भगवान् जो कुछ दें , उसीको आनन्दपूर्वक ग्रहण करनेका अभ्यास करो ।

50 – इज्जत , मान और नामका मोह न करो ।

51 – भगवान्‌की कृपामें विश्वास करो ।

जय श्री राम

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