जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 13

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                            जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                            ब्रह्मचर्य 

जो व्यक्ति दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है ; उसे मानव , देव , दानव , यक्ष , राक्षस सब नमस्कार करते हैं । 
समस्त तपस्याओं में ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है । 
 संसार की सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक ज्ञान की रचनाएँ प्रायः ब्रह्मचारी लेखकों की लेखनी से निसृत हुई है ।
 
  माता , बहिन और पुत्री के साथ भी एकान्त में एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए । इन्द्रिय समूह बलवान होता है । वह विद्वान् को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । 
  

                               भक्ति 

दुःख आने पर भगवान की याद आने लगे , यह भगवान की भक्ति नहीं है । 
भगवान की याद न आने पर दुःख का अनुभव हो , यह भगवान की भक्ति है । 
जब मैं परमात्मा के सामने भक्ति में लीन होकर खड़ा होता हूँ , तब उनमें और मुझमें कोई अन्तर नहीं रहता । 
 भक्ति में जितनी न्यूनता , उतनी ही पुण्यबंध में हीनता । 
 
भक्ति में बुद्धि की जरूरत नहीं , शुद्धि की जरूरत है ।
 

                           भय

 भय और शोक जीवन की गंगा में विष घोल देते हैं । भयग्रस्त रहना मूर्खता है । 
 
जितना हम भयभीत होते हैं या भयपूर्ण विचार के चंगुल में फँसते हैं , उतना ही हम अपनी संकट प्रतिरोध – शक्ति को क्षीण करते हैं । 
 आपके निर्धनता के विचार , भय , आशंकाएँ , संशय , अनिश्चितताएँ व अस्थिरताएँ आपके निकट उन पदार्थों तथा सुख – सुविधाओं को नहीं आने देती , जो प्राप्त करने योग्य है , क्योंकि आपकी मनोदशा उत्तम नहीं है । 
 
जैसे प्राणीयों को मृत्यु से भय होता है , वैसे ही धनियों को राजा , आपदा , चोर और स्वजन से भय होता है । 
जो दूसरों में डर का संचार करता है , वह खुद हमेशा डर से आतंकित रहता है । 
भय से तभी तक डरना चाहिए , जब तक वह सामने न आ जाए । कोई किसी का अहित नहीं कर सकता । 
जो होने का है वह होता है । फिर किसी से डरना क्या और डराना क्या ? डरना और डराना अज्ञान और मन की दुर्बलता है । 

                            भाग्य 

भाग्य भी वीरों की सहायता करता है । केवल काहिल और निकम्मे लोग ही भाग्य का रोना रोते हैं । 
भाग्य से मारे हुए व्यक्ति की सम्पूर्ण बुद्धि विपरीत हो जाती है । 
रे जीव , मैं धन से परिपूर्ण हूँ , ऐसे मत फूल ; और मैं धन से खाली हूँ , इसका दुःख मत कर । 
खाली को भरा और भरे को खाली करने में भाग्य को देर नहीं लगती । 
भाई – भाई का भाग्य नहीं बदल सकता । तेरा भाग्य यदि साथ देता है तो तू दूसरों के हँसाने में निमित्त बन । 
जिनका भाग्य कमजोर है , उनके साथ हमारा व्यवहार क्षुद्र है ; जिनका भाग्य भारी है , उनके साथ हम बहुत उदार हैं । 
 जितना समय भाग्य भोगने में लगा रहा है , उतना नये भाग्य बनाने में नहीं लगाता । जीवन के अंधकारों से तुम क्यों घबराते हो । 
 
भाग्य का सूर्य तो अन्धकार में ही उदित होता है । 
हाथी , सर्प और पक्षियों का बन्धन में पड़ जाना , सूर्य तथा चन्द्रमा का ग्रह से पीड़ित होना और विद्वानों की दरिद्रता को देखकर मेरी समझ में यही आता है कि भाग्य प्रबल है । 

                           भाषण 

 लम्बा भाषण झाड़ने वाले की सोच गहरी नहीं होती । जरूरत से ज्यादा बोलने वाले कभी अच्छे वक्ता नहीं हो सकते । 
 
भाषण प्रेम प्रसंग की तरह होता है , शुरू तो कोई मूर्ख भी कर सकता है पर प्रभावी समापन होशियार ही कर पाता है ।                            

                               मन 

मन विचारों का विश्वविद्यालय एवं विचारों का कुंभ – मेला है । 
मन यदि दुविधा में हो तो अन्य सभी सुविधाएँ भी गौण बन जाती हैं । 
ईश्वर की कृपा का अधिकारी वही होता है , जो मन से पवित्र है । 
आजादी मनचाही चीज का भरपूर आनंद उठाने में नहीं , बल्कि मन को वश में करने से मिलती है । 
मन की सुंदरता , तन की सुंदरता में जान डालती है । मन का दुःख मिट जाने पर शरीर का दुःख भी मिट जाता है । 
मन ही मनुष्य के उत्थान एवं पतन का कारण है । मन मित्र है , जिसे हमारे सुख की चिन्ता है । अन्तःकरण कल्याण – मित्र है , जिसे हमारे हित की चिंता है । 
 मन चंचल था , तब समस्याएँ बहुत प्यार करती थीं । पता नहीं , क्या हुआ ? मन शान्त बना , अब समस्याएँ फूटी आँखों से भी देखना नहीं चाहतीं । 
 
पद , प्रतिष्ठा और पैसे में ही मन रीझता है और इनके अभाव में ही मन रोता है । 
अभी हमको दुनिया से लड़ना आया है , अपने मन से लड़ना नहीं आया है । 
मन की स्थिति बदलने के लिए दुनिया उपयोगी नहीं होगी । भगवान महावीर की वाणी उपयोगी होगी । 
घोड़े और गधे की जिंदगी में , देवगति की जिंदगी में , भोगी भँवरों की तरह खूब भोगा , खूब खाया , खूब पीया , लेकिन यह मन कभी तृप्त नहीं हुआ ।

                        मनस्वी

 
 मनस्वी पुरुष भले ही मर जाये , परन्तु हीन भाव पैदा नहीं कर सकते , जैसे अग्नि भले ही बुझ जाये , परन्तु ठण्डी कभी नहीं होती है । 
 
श्रेष्ठ अश्व कोड़े की मार सहन नहीं करते हैं , सिंह मेघ की गर्जनाओं को नहीं सहता है , इसी तरह मनस्वी व्यक्ति दूसरे के द्वारा किये गए अंगुली निर्देश को सहन नहीं करते हैं । 
जिस प्रकार मछली की उछल कूद से समुद्र कभी चंचल अथवा तरंगित नहीं होता , गंभीर ही बना रहता है । 
इसी प्रकार मनस्वी को ब्रह्माण्ड का लालच देकर भी लुभाया नहीं जा सकता , अन्य पदार्थों की तो बात ही क्या है ।
 कार्य करने वाले मनस्वी सुख – दुःख की गणना नहीं करते । मनस्वी व्यक्ति समुद्र की तरह गंभीर , वीर , धीर व सत्वयुक्त होते हैं । 
 
वे असाधारण कर्म करके भी स्वयं उसका उल्लेख नहीं किया करते रत्न मजूषा

                              मनुष्य 

 
जीवन में सहनशीलता , आचरण में दृढ़ता , हृदय में कोमलता , आँखों में अनुकम्पा , जीभ में मिठास , इन्द्रियों पर संयम तथा विचारों में अपरिग्रह की भावना होना श्रेष्ठ मानव का लक्षण है । 
दुनिया में तीन तरह के आदमी हैं – इंजिन की तरह , गाड़ी की तरह और ब्रेक की तरह । 
मनुष्य जब पशु बन जाता है तो वह पशु से भी बदतर हो जाता 
 उत्साही , आलस्यहीन , बहादुर और पक्की मित्रता निभाने वाले मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास करने के लिए स्वयं चली आती है । 
मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है ।
 मनुष्य के दुःख और सुख ; गाड़ी के पहिये की तरह घूमते रहते हैं । 
 
मनुष्य उम्र के आधे पड़ाव में सबसे ज्यादा दुःखी रहता है । मानव में से इच्छा का अभाव कर दिया जाये तो वो भगवान बन जाये । 
कोई भी मनुष्य अपने सच्चेपन और निर्भीकता के कारण याद किया जाता है , अन्य चीजों के लिए नहीं । श्रेष्ठ मनुष्य वे हैं , जो मन की शक्तियों के बादशाह हैं ।
 मनुष्यता सब की जड़ है । इसी से जीवन के सभी प्रयोजन सिद्ध होते हैं । 
 
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