जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 12
जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते
प्रशंसा
यदि मैं अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होता हूँ , तो निन्दा से मुझे दुःख अवश्य होगा ।
अद्भुत कार्य करने पर वैरी भी प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं । प्रशंसा की ठण्डी आग वज्र को भी पिघला देती है ।
जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं , वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है । जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उधर नहीं जाता ।
उनकी प्रशंसा न करो , जिन्होंने अनीतिपूर्वक सफलता पाई और सम्पत्ति कमाई । प्रशंसा झूठी भी अच्छी लगती है ,
आलोचना सच्ची भी बुरी लगती है । हमें दूसरों की प्रशंसा सुनने में सुख होता है या स्वयं की ?
प्रसन्नता
जब इच्छाएँ विदा हो जाती हैं , तब प्रसन्नता प्रकट हो जाती है । व्यवहार और चरित्र ऐसा हो कि जो भी हमसे मिले वह प्रसन्नता से भर जाये ।
खुद के धन की चाबी यदि खुद के पास ही होनी चाहिए तो खुद के चित्त की प्रसन्नता की चाबी भी खुद के पास ही होनी चाहिए ।
अवसाद से बचने की सर्वश्रेष्ठ औषधि है – हर समय प्रसन्न रहिए ।
प्रसन्नता पूर्वक उठाया गया बोझ हल्का प्रतीत होता है । हर सुबह की शुरूआत प्रसन्न मन के साथ कीजिए ।
आपका पूरा दिन उत्साह और ऊर्जा से भरा रहेगा । प्रसन्न रहने के दो उपाय हैं – आवश्यकताएँ कम करें और परिस्थितियों से तालमेल करें ।
आपके पास जो भी है , जैसा भी है , उसमें खुश रहना चाहिए ,
वरना आज की तनाव भरी दुनिया में सुख से जीना कठिन हो जाएगा ।
खिड़की पश्चिम की – सूर्योदय दर्शन असंभव । मनोवृत्ति नकारात्मक मन की – प्रसन्नता असंभव । नकारात्मक मन की – प्रसन्नता असंभव ।
प्रसिद्धि
प्रसिद्धि के भाव कोयले हैं । भोजन की भूख तन में होती है और नाम की भूख मन में ।
नाम की भूख असीम होती है और चौबीस घंटे बनी रहती है । नाम की भूख से बचो , अन्यथा अध्यात्म से वंचित रहना पड़ेगा ।
कण्ठस्थ ज्ञान प्रसिद्धि देता है , हृदयस्थ ज्ञान सिद्धि देता है ।
प्रसिद्धि सिद्धि के लिए बाधक है ।
प्रार्थना
दूसरों के सामान्य गुण भी मुझे प्रसन्नता से भर दे , मेरी सामान्य भूल भी मुझे शुद्ध कर दे । हे प्रभु ! ऐसा अंतर्मन दे ।
यह अच्छी बात है कि मनुष्य प्रार्थना करे मलाई , घी व दूध की और जीवन गुजारे छाछ का ।
ईश्वर को पत्र लिखने में न कागज़ चाहिये , न कलम , न दवात , न शब्द ; उस पत्र का नाम है – प्रार्थना ।
पृथ्वी पर इतने मन्दिर , मस्जिद व गिरजाघर हैं कि यदि उनकी प्रार्थनाएँ सत्य होती तो पृथ्वी स्वर्ग बन जाती । ऐसा न होने का कारण यह है कि या तो परमात्मा नहीं है या फिर प्रार्थना गहरी नहीं हैं ।
संसार की समस्या से छुटकारा पाना है तो प्रार्थना के सुंदर भाव जीवन में उतारो ।
प्रेम
दुनिया में प्रेम जैसा कोई स्वजन नहीं व जैसा दुश्मन नहीं ।
प्रेम प्रकृति का सबसे मधुर उपहार है । आप उस प्रेम को अपनाइये जिसमें स्वार्थ की बू न हो ।
प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से बेहतर है ।
प्रेम की रोटी में अमृत रहता है , चाहे वह गेहूँ की हो या बाजरे की ।
धरती पर ही ‘ स्वर्ग ‘ की अनुभूति के प्रयास , इसका नाम है – प्रेम । मकान में प्रवेश करने के लिए शायद कई द्वार होते हैं ,
परन्तु प्रभु के निकट पहुँचने के लिए तो एक ही द्वार होता है , और उस द्वार का नाम है – प्रेम ।
दुःख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की बेहद जरूरत है।
प्रश्नों और पछतावे में ही यदि हम सारी जिन्दगी बिता देंगे तो फिर प्रेम कब करेंगे ?
पीड़ित व्यक्ति के लिए आपके प्रेम की एक हिलोर भी मरुस्थल में सागर का काम करेगी ।
प्रेम और वासना में उतना ही अन्तर है , जितना कंचन और काँच में ।
संपत्ति – रहित जीवन दरिद्र है , प्रेम – रहित हृदय दरिद्र है ।
अगर आप चार हैं और रोटी एक , तब भी मिलजुलकर खाइये ।
भाई – भाई के बीच मनमुटाव और स्वार्थ भावना का त्याग कीजिये , नहीं तो आपका घर नरक बन जाएगा ।
भाई के प्रति प्रेम और त्याग की भावना अपनाइये , घर का स्वर्ग सुरक्षित रहेगा । प्रेम परमात्मा की यात्रा का पुल है ।
फिजूलखर्ची
जो मूर्ख दिन दहाड़े कपूर की बत्ती जलाता है , एक दिन ऐसा आयेगा कि उसे रात को जलाने के लिए तेल भी न मिलेगा ।
उसकी फिजूलखर्ची एक दिन विषम फल लायेगी । कुबेर भी आमदनी से ज्यादा खर्च करेगा , तो एक दिन कंगाल हो जायेगा ।
मनुष्य धन के अभाव से उतना कष्ट नहीं पाता , जितना अपनी फिजूलखर्ची से पाता है । अपव्यय अनर्थदण्ड है , उससे दूर रहना चाहिये ।
बुद्धि
अभावों में अभाव है बुद्धि का अभाव । दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता ।
जहाँ बुद्धि प्रयोग की आवश्यकता है , वहाँ बल प्रयोग करने से कोई लाभ नहीं ।
हमारे साथ जो हृदय से बात करते हैं , उन्हें बुद्धि से जवाब देना उचित नहीं है ।
नये कपड़े बिगड़ न जायें इसकी सावधानी तो मैं हमेशा रखता चला आया हूँ ।
हे प्रभु ! अब आप मुझे ऐसी सद्बुद्धि दीजिये कि मुझे मिले हुए नये दिन को मैं पाप करके न बिगाडूं ।
जिस प्रकार सूर्य की उपस्थिति अंधकार के लिए प्रतिबंधक सिद्ध होती है , उसी प्रकार सद्बुद्धि की उपस्थिति पाप के लिए प्रतिबंधक होती है ।
जहाँ सद्बुद्धि है ; वहाँ सुख , सम्पत्ति और समन्वय है ।
बुद्धिमान
बुद्धिमान शत्रु भी श्रेष्ठ होता है , मूर्ख मित्र भी हितकारी नहीं होता है ।
बुद्धिमान मनुष्य अपने शत्रुओं से बहुत – सी बातें सीखते हैं ।
बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुःखों के लिए रोया नहीं करते ,
अपितु वर्तमान में दुःख के कारणों को रोका प्रेरणा हैं । बुद्धिमानों की परीक्षा संकटकाल में होती है और शूरों की संग्राम में ।
बुराई
बुराई करने में मनुष्य झिझकता नहीं , पर बुरा कहलाना उसे अच्छा नहीं लगता ।
अगर बुरा कहने में उसे झिझक हो तो बुरा कहलाने का अवसर ही नहीं आता ।
बुरा दिखना बुरा नहीं , बुरा होना बुरा है । अच्छे कार्य करना व्यक्ति की अच्छाई है ,
किन्तु उसकी घोषणा करना उसकी बुराई है । भलाई करना जरूरी नहीं , पर भला बनना जरूरी है ।
यदि आप बुरे हैं और कोई भला कहे तो क्या लाभ ? यदि भले हैं और कोई बुरा कहे तो क्या हानि ?
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