जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 11
जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते
परिवार
जिस परिवार में वात्सल्य , विनय और विवेक का व्यवहार नहीं है , उस परिवार को रणभूमि बनते देर नहीं लगती ।
जिस परिवार का खानपान शुद्ध और व्यसनमुक्त है , वह परिवार स्वर्ग है ।
बच्चों से यह कहलवाने के लिए कि पापा आप कितने अच्छे हैं आप भी कहें ‘ बेटा , तुम बहुत अच्छे हो । ‘
हम जैसे भी थे , माता – पिता ने हमें स्वीकार लिया । माता पिता जैसे भी हैं , हमें उन्हें स्वीकारना चाहिये ।
हम अपने आपको कम से कम परिवार में रहने लायक तो बना लें ।
जो परिवार में शान्तिपूर्वक नहीं रह सकता , वह पड़ोस , समाज , राष्ट्र तथा विश्व के विकास में क्या योगदान देगा ।
जब तक इंसान परिवारप्रिय नहीं , स्वजनप्रिय नहीं , समाजप्रिय नहीं , सर्वप्रिय नहीं तो वह अरिहंतप्रिय कैसे होगा ।
जिस व्यक्ति के दिल में परिवारजनों के प्रति परमात्म भाव नहीं जगे तो मंदिर की मूर्ति में भगवान कैसे मिलेगा ।
जो परिवार का ही भला नहीं कर सका , वो दुनिया का क्या भला करेगा ?
जन्मपत्री वर – वधु की नहीं , सास – बहू की मिलाइये । उनके गुण मिल गये तो वर – वधु के गुण स्वतः मिल जाएंगे ।
स्त्री , पुत्र , मित्र और धन में विशेष आसक्ति नहीं करनी चाहिए , क्योंकि उनसे वियोग अवश्य होता है ।
अंगुलियाँ साथ रहती हैं तो अंगूठी ( आभूषण ) पहनती है । अंगूठा अकेला रहता है तो उसे बिना गहने के रहना पड़ता है । अकेले रहोगे तो आभूषण पहनने नहीं मिलेंगे ।
दाम्पत्य जीवन जब सेवा , सद्विचार , सद्भावना , संस्कृति , सदाचार , समर्पण से जुड़ जाता है , तब सुखमय बनता है ।
घर तो पशु – पक्षी भी बना लेते हैं , मनुष्य को चाहिये कि वे अपने घर को आदर्श घर बनाए ।
परिश्रम
जो उद्यम करता है , वो विघ्न को वश में करता है । थकान काम की अधिकता से नहीं ,
काम को भार समझने से होती है । जो परिश्रम से डरता नहीं , प्रयत्न से सकुचाता नहीं ,
साहस से कतराता नहीं , वह अवश्य ही एक दिन विपुल सम्पत्ति का भागी बनता है ।
भाग्य और पुरुषार्थ जीवन के दो पहिये हैं । सभी सद्भाग्य की कामना करते हैं ,
तो उसके निर्माण के लिए उतना सत्पुरुषार्थ भी किया जाना चाहिये । किस्मत और मेहनत दोनों एक दूसरे की मदद से ही फलीभूत होते हैं ।
निरन्तर अथक परिश्रम करने वाले दुर्भाग्य को परास्त कर देते हैं ।
मेहनत से मत कतराइये , विकास के शिखरों तक पहुँचने का वही रास्ता है ।
आशावाद अच्छी चीज है , मगर तब , जब कर्म ही सर्वप्रमुख हो । जो कायर है , जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है ,
वही दैव का भरोसा करता है । सफलता की राह में मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता ।
कड़ी मेहनत के बिना सफलता का प्रयास करना तो ऐसा है जैसे आप वहाँ से फसल काटने की कोशिश कर रहे हैं ।
जहाँ आपने फसल बोई ही नहीं है । उद्योग से दरिद्रता नहीं रहती , जप से पाप नहीं रहता , मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता ।
व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से कार्य आरंभ करें । क्योंकि कार्य की सफलता भाग्य और पुरुषार्थ दोनों में निहित है ।
परिस्थिति
खुशी और उत्साह परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेते हैं ।
जब आई हुई परिस्थिति का सामना करना तय है तब क्यों न धैर्य और प्रेम से ही उसका सामना किया जाए ।
दुखियों की दशा वही जानता है , जो अपनी परिस्थितियों से दुःखी हो गया हो ।
जब दूसरों के पाँवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है ।
परिस्थितियाँ परिस्थितियाँ होती हैं । वे न अनुकूल होती हैं , न प्रतिकूल ।
परिस्थितियों से प्रभावित न होना ही जीवन की पूर्णता है ।
पाप
पाप का सम्पूर्ण त्याग किये बिना संताप से पूर्ण मुक्ति नहीं हो सकती ।
कुछ लोग संकोचवश पाप करते हैं और लोक लज्जावश अपनी आत्मा का विनाश करते हैं ।
पाप अपने साथ रोग , शोक , पतन और संकट भी साथ लेकर आता है ।
हे प्रभु ! जिसके हृदय में आप नहीं , वहाँ पाप के सिवाय कुछ नहीं और जहाँ पाप है , वहाँ संताप ( दुःख ) के सिवाय कुछ नहीं ।
अति पाप कभी माफ नहीं होता । वह कभी न कभी जीवन में ज्वाला का रूप लेगा ।
जो धन छूटने वाला है , उसके लिए पाप क्यों करें ।
इस संसार में वह व्यक्ति सुख नहीं पा सकता है , जो अधार्मिक है ,
जिसके पास अन्यायमूलक धन है तथा जो नित्य हिंसा में रत है ।
पाप करने से जो डरता है और पाप करने के बाद जो पश्चात्ताप से रोता है , पाप उसका अवश्य क्षीण होता है ।
पाप को आप राजा बना दो , वह आपको घायल कर देगा । आप उसे घायल कर दो , वह आपको राजा बना देगा ।
उस पाप से बचिये जिसके चलते आप एक अनजाने भय से घिरे रहते हैं ।
याद रखना चेतन , ये पापकर्म बड़े निष्ठुर होते हैं – अतः सदैव पाप से बचते रहना ।
इन्सान पाप कार्य में पूरी शक्ति लगाता है परन्तु पुण्य कार्य में शक्ति छिपाता है ।
मनुष्य को हर वक्त सोचना चाहिए कि पुण्य के उदय में कहीं पाप का बन्ध तो नहीं हो रहा है ।
संसार व्यवहार में किये पाप धर्म स्थानक में किये धर्मध्यान से नष्ट हो जायेंगे , परन्तु धर्म स्थानकों में किये पाप कैसे माफ होंगे ?
पुस्तक
तुम्हारे पास दो रूपये हों तो 1 रूपये का भोजन व दूसरे रूपये की पुस्तक खरीदो , क्योंकि रोटी जीवन देती है और पुस्तक जीवन की कला ।
पुस्तक से रहित घर आत्मा से रहित शरीर के समान है ।
अच्छी पुस्तक वह है जो आशा से खोली जाए और लाभ से बंद की जाए ।
मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूंगा । क्योंकि उनमें वो शक्ति है कि वे जहाँ भी होंगी , वहाँ अपने आप स्वर्ग बन
जाएगी।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रूजवेल्ट व्हाइट हाउस के अवकाश काल में मध्याह्न तक आगन्तुक लोगों से 5-5 मिनट मिला करते थे ।
बीच के अल्पतम काल में वे पुस्तक पढ़ने में लग जाते । इस प्रकार उन्होंने अनेकानेक पुस्तकें पढ़ डालीं ।
पढ़ने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं व स्थायी खुशी देने वाला कोई साधन नहीं । जायेगा ।
प्रयत्न
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
क्रमबद्ध प्रयत्न ही सफलता को नजदीक करते हैं । समाधान के लिए प्रयत्न कीजिये वरना आप स्वयं ही समस्या बन जाएंगे ।
सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता । कोशिश अगर तबीयत से करें तो छोटा – सा पत्थर भी आसमान में छेद कर सकता है ।
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