जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 10
जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते
नैतिकता
यदि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्य खो देता है तो मानो अपना सब कुछ खो देता है ।
चरित्रविहीन शिक्षा , मानवताविहीन विज्ञान और नैतिकताविहीन व्यापार खतरनाक होते हैं ।
व्यापार में अनैतिकता की जाती है , क्या वह मेरी प्रशंसा मात्र से जाने वाली है ? दिन भर की जाने वाली ईर्ष्या , आलोचना ,
एक दूसरे को गिराने की भावना का पाप , क्या मेरे पैरों में सिर रखने मात्र से साफ हो जायेंगे ? ये प्रश्न मुझे बड़े बेचैन कर देते हैं ।
प्रदर्शन
किसी पर कीचड़ उछालने से पहले इतना जरूर याद कर लें कि हम भी दूध के धुले नहीं हैं ।
दूसरों के दोष देखना स्वयं के दोषी होने का पक्का प्रमाण है ।
औरों की चर्चा में रस वे लेते हैं , जिनके जीवन में सृजन नहीं । जीवन के सृजन में व्यस्त व्यक्ति पर चर्चा में रस लेने की फुर्सत ही कहाँ ।
अपने आपको पहचानना सबसे कठिन काम । दूसरों की गलती निकालना सबसे आसान काम ।
परमात्मा दुनिया छोड़ने से परमात्मा नहीं मिलता , परमात्मा मिलने से दुनिया अपने आप छूट जाती है ।
संसार के ‘ पद ‘ प्राप्त करने के लिए हम जितनी दौड़ – धूप करते हैं ,
उससे कई गुना कम दौड़ – धूप करने पर हमें परमात्मा और परमपद , दोनों मिल सकते हैं ।
प्रभु के निकट पहुँच पाने के लिए हजारों जन्म भी शायद पर्याप्त नहीं है ,
परन्तु प्रभु से दूर होने के लिए तो एक ही क्षण पर्याप्त है ।
हमने परम्परा को पकड़ा है , परमात्मा को नहीं । जो प्राण परमात्मा में पड़े रहने चाहिये वो प्राण पैसे में , पद में , प्रतिष्ठा में पड़े रहते हैं ।
तुम्हारे भीतर एक ऐसा दीप जल रहा है , जिसके सामने सूर्य की रोशनी भी फीकी पड़ जाती है ।
एक ऐसा प्रकाश पल रहा है , जिसके सामने दीपावली का प्रकाश भी फीका पड़ जाता है ।
उस सूर्य , उस प्रकाश का नाम है तुम्हारा परमात्मा । दुनिया में रहते हुए दो चीजों को कभी नहीं भूलना चाहिए – एक तो परमात्मा तथा दूसरी अपनी मौत ।
परमार्थ
कभी निष्फल न जाए ऐसा श्रेष्ठ निवेश यदि कोई है तो वह है परमार्थ ।
पेट तो एक ही है और हाथ दो । यदि आप दोनों हाथों का उपयोग करें तो अपने साथ किसी और का भी पेट भर सकते हैं ।
पशु भी अपने लिये घास का भोजन सुलभ कर लेता है और प्यास लगने पर जो जल मिल जाता है , उसे पी लेता है ;
किन्तु इस संसार में मनुष्य दूसरे के लिए भी प्रयत्न करता है ; यह परार्थवृत्ति ही मनुष्य का सुख है , तेज है और पौरुष है ।
परिग्रह
संसार के सब जीवों को जकड़ने वाले परिग्रह से बढ़कर कोई दूसरा बंधन नहीं ।
पदार्थों में आसक्ति परिग्रह है ।
कितना भी परिग्रह , पसारा , धन इकट्ठा कर लो , जिस दिन मृत्यु होगी , सब धन आपके लिए जीरो हो जायेगा । अतः वैभव बढ़ाने में प्रयास नहीं करें ।
परिग्रह यानि पर पदार्थों को अधिक से अधिक संग्रह करने की लालसा करना ।
आदमी लेने के लिए तैयार हो जाता है , देने के लिए कितना विचार करता है ।
परिग्रह ही सब पापों की जड़ है । हिंसा , झूठ , चोरी , मिलावट , लूट , डकैती , खून , परिजनों से झगड़ा ; ये सब परिग्रह के ही कारण हैं ।
परिवर्तन
परिवर्तन से मत डरिए , वरना आप नई प्रगति से वंचित रह जाएँगे ।
अगर आप चुप रहेंगे तो आपको पछताना नहीं पड़ेगा । वक्त आपको बदलने के सौ – सौ अवसर देता है ।
कहीं ऐसा तो नहीं कि आप खुद ही बदलना नहीं चाहते । जो बदला नहीं जा सकता , उसे अपना लीजिए ।
जो बदला जा सकता है , उसे बदलने में मन को कमजोर मत होने दीजिए ।
जब तक लोग स्वयं को सुधारने का प्रयत्न नहीं करेंगे , तब तक कोई सुधार होना असंभव है ।