जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते ।

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जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                            धर्म

 अहिंसा , संयम और तप उत्कृष्ट धर्म है ।
 धर्म उसी के मन में रहता है जो निर्मल हो । माया और दम्भ से परिपूर्ण हृदय में धर्म का प्रवेश नहीं हो सकता ।
 सिर्फ एक धर्म का साथ रहने से इन्द्र और देवता भी सेवा करते हैं और धर्मरहित व्यक्ति के घर में चाण्डाल भी पैर नहीं रखते ।
 मूर्ख लोग अधर्म भी धर्म कहकर ही करते हैं ।
धर्म एक ही है , हालांकि उसके सैकड़ों संस्करण हैं ।
 विज्ञान सत्य की गारण्टी देता है , शान्ति की नहीं । धर्म सत्य , सुख व शान्ति देता है ।
सच बताओ , हमें व्यथा किस बात की है ? मन में धर्म प्रवेश नहीं करता , इस बात की या धर्म में मन नहीं लगता इस बात की ?
 धर्म बादामपाक जैसा है , पचने में भारी , पर स्वास्थ्यवर्द्धक । पाप पाव – भाजी जैसा है . पचने में हल्का पर स्वास्थ्यनाशक ।
 एक धर्म ऐसा कीजिए कि किसी रोते हुए अनाथ बच्चे के चेहरे | पर मुस्कान का फूल खिल उठे ।
इतिहास कहता है , भूतकाल में सुख था । विज्ञान कहता है , भविष्य में सुख मिलेगा ।
 धर्म कहता है , सुख वर्तमान में ही है । मंदी में धर्म कर नहीं पाते । तेजी में धर्म करना नहीं है ।
हमारा क्या होगा ? एक ही धर्म समस्त पापों को साफ कर सकता है ।
एक पाप समस्त धर्मो को समाप्त कर सकता है ।
मनुष्य अर्थनीति में जितना समय लगाता है , उसका आधा समय भी धर्मनीति में लगाये तो उसका उद्धार हो सकता है ।
धन एक शक्ति है लेकिन सिर्फ इसी लोक में उपयोगी है । धर्म महाशक्ति है जो लोक – परलोक दोनों में उपयोगी है ।
धर्म दल बदलने की नहीं , मन बदलने की बात करता है । साधु को क्षमा , श्रावक को दया , बालक को संस्कार , स्त्री को शील , द्रव्य को दान , कुल को सुपुत्र और जीवन को धर्म शोभा देता है ।
 हे भव्य पुरुषों ! धन को दुःख बढ़ाने वाला तथा महाभय को प्राप्त कराने वाला जानकर सुखों को देने वाले महान् ज्ञान दर्शनादि गुणों को और मोक्ष को देने वाली धर्म रूपी धुरा को धारण करो अर्थात् धर्म में पुरुषार्थ करो ।
 जीवन मूल्यों के लिए ही तो धर्म साधना है । यदि धर्म के अभ्यास से जीवन मूल्य ऊँचे नहीं उठते , हमारा लोक व्यवहार नहीं सुधरता ,
हम अपने लिये तथा औरों के लिए मंगलमय जीवन नहीं जी सकते , तो ऐसा धर्म हमारे किस काम का ?
 धर्म एक आदर्श जीवन शैली है , सुख से रहने की पावन पद्धति है , शान्ति प्राप्त करने की विधा है तथा सर्वकल्याण की आचार संहिता है ।
तू विषयों के अपवित्र गड्ढे में गिरा , क्रोधादि कषायों की भयंकर जाल में फँसा , धर्म को हृदय में स्थान नहीं दिया । अरे आत्मन् ! धर्म के बिना तेरा क्या हाल होगा ?

                               धैर्य

 धीरज रखिये । भले ही धैर्य का स्वाद कड़वा हो , पर इसका फल मीठा ही होता है ।
कोई भी कार्य करने के पूर्व एक क्षण रुकें , उसके परिणाम के बारे में सोचें , फिर प्रारंभ करें ।
 जिसके पास धैर्य होता है , वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है ।
संकट के समय धैर्य धारण करना मानो आधी लड़ाई जीत लेना है ।
धैर्य प्रतिभा का आवश्यक तत्त्व है । योजना धैर्य से बनाइये और काम पूरी गति से कीजिये ।
 यदि आप हर ओर से हार चुके हैं , तब भी घबराइये नहीं , धैर्यपूर्वक ईश्वर की शरण स्वीकार कीजिए ।
वहाँ से सहारे की कोई न कोई किरण अवश्य मिल जाएगी । धैर्य और शान्ति रखिये , विशेष रूप से उस समय जब कोई नाराज होकर आपको बुरा – भला कहने लगे ।
 अपनी मेहनत का फल पाने के लिए बेचैन मत होइये । वरना पक रहे फल को पाने से वंचित रह जाएंगे ।
 धीरज रखिए । आपका सिर माचिस की तीली नहीं है कि छोटी सी रगड़ लगते ही सुलग उठे ।
हिम्मत व धैर्य जीवन में सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने की सीढ़ी है ।

                               निर्णय

 अकेला व्यक्ति अगर बहुत जानकार है तो भी उसके निर्णय में दोष हो सकते हैं । निर्णय जल्दी कीजिये , लेकिन देर तक सोचने के बाद ।
महज सोचते रहने की बजाय निर्णय कीजिए और काम में लग जाइए । विश्वास रखिए ईश्वर आपके साथ हैं । महान् व्यक्ति महत्त्वपूर्ण एवं श्रेष्ठ निर्णय करने में विलम्ब नहीं करते ।

                            निर्भरता 

दूसरों पर बहुत अधिक निर्भर रहने से निराशा के अवसर बढ़ जाते हैं ।
अपने आप को स्वयं व्यवस्थित कीजिए वरना आपको दूसरों की व्यवस्थाओं पर चलना पड़ेगा ।
 किसी की मेहरबानी माँगना अपनी आजादी को समाप्त करना है ।
दूसरों पर निर्भरता आपको काफी हद तक असमर्थ बना देती है ।
अगर आपको दूसरों की प्रतीक्षा करने की आदत है तो आप अवश्य ही पीछे रह जायेंगे ।

                          निराशा

 निराशा हमारी आशाओं तथा आकांक्षाओं को ध्वस्त कर देती है ।
निराशा हमारी प्रसन्नता , सुख और शान्ति को नष्ट ही नहीं करती ,
 वह हमारे उन संकल्पों की भी हत्या कर देती है , जो हमने कुछ सत्कर्मों को करने के लिए किए थे ।
यदि आप निराशा के भाव अपने मन में आने देते हैं तो निश्चित जानिए कि आप अपने हाथों अपना विनाश कर रहे हैं ।

                            निंदा

 आपके पास किसी की निंदा करने वाला , किसी के पास आपकी निंदा करने वाला होगा ।
स्वयं की उन्नति में अधिक समय देंगे तो दूसरों की निंदा करने का समय नहीं मिलेगा ।
यदि किसी एक ही कार्य से जगत को वश में करना चाहते हो तो दूसरे की निन्दा रूपी फसल से अपनी गाय रूपी इन्द्रियों को हटा लो ।
 झूठी निन्दा से डरना नहीं और सच्ची प्रशंसा में असावधान नहीं होना चाहिये ।
 निंदा वही करता है , जो स्वयं कुछ नहीं कर पाता ।
 हमारे दिन नींद बिना बीत सकते हैं , पर क्या निंदा बिना बीत सकते हैं ? जो परनिन्दा से डरता है और दान दिये बिना भोजन नहीं करता ,
 उसका वंश कभी निर्बीज नहीं होता । निंदा सुनना बहुत घातक है ।
हिंसा बिना श्रावक नहीं रह सकता परन्तु निंदा बिना श्रावक रह सकता है ।
 निंदा अनर्थ दंड है ।

                             नीति 

धन का संग्रह , मार्ग की यात्रा , पर्वत का आरोहण , विद्या व धर्म का संग्रह तथा व्यायाम धीरे – धीरे करना चाहिये ।
 जहाँ बिना किसी प्रयोजन के ही अत्यधिक आदर हो वहाँ निश्चय ही संशय करना चाहिए ।
क्योंकि इसका परिणाम अत्यधिक क्लेशदायी होता है । संसार में ऐसे कोई नहीं हैं , जो नीति के जानकार न हों परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं ।
वही बन्धु है जो हितैषी हो , वही पिता है जो पोषक हो , वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही पत्नी है जिससे चिन्ता समाप्त हो ।
 अपने जख्म उन लोगों को कभी मत दिखाइये जिन लोगों के पास मरहम नहीं ।
शेष ऋण , शेष अग्नि तथा शेष रोग , पुनः पुनः बढ़ते हैं ; अतः इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिये ।
 कुमंत्रणा से राजा , कुसंगति से मुनि , अधिक लाड़ – प्यार से बेटा , अध्ययन न करने से ब्राह्मण , कुपुत्र से कुल , दुर्जन की सेवा से शील , मद्यपान से लज्जा , देखभाल न करने से कृषि , दूर देश में रहने से स्नेह ,
अनीति से समृद्धि और प्रमाद से धन का नाश होता है । बुरों पर दया करना भलों पर अत्याचार है और अत्याचारियों को क्षमा करना पीड़ितों पर अत्याचार है ।
 पत्नी का वियोग , सज्जनों के द्वारा निन्दा , झूठ का शेष , कृपण की सेवा , दारिद्रय में बान्धव का आगमन – ये पाँच बिना अग्नि व्यक्ति की देह को जला देते हैं ।
जिनका मन करुणा रस से रंजित है , जिनका वचन परनिन्दा से मुक्त है और जिनका धन परोपकार के लिए है ; वे इस पृथ्वी पर भारभूत नहीं हैं ।
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