जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 8
जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते
त्याग
रसना के रस का त्याग कठिनतम नहीं , कठिन है । प्रशंसा के रस का त्याग कठिन नहीं , कठिनतम है ।
सुख सुविधा भी बनी रहे और लक्ष्य भी पूरा हो जाए , संभव नहीं होता । हर लक्ष्य सुख की कुर्बानी माँगता है ।
भोग से आत्मा का शोषण होता है , त्याग से आत्मा का पोषण होता है ।
उस सुख का त्याग कर दो जो किसी का दुःख बने ।
दान
दानों में सर्वश्रेष्ठ दान अभयदान ( जीवनदान ) है ।
गृहस्थ के लिए दान प्रथम कर्त्तव्य है ।
सौ हाथों से जोड़ो और हजार हाथों से बाँटो ।
दान में प्रदत्त धन घटता नहीं है , अपितु अभिवर्धित ही होता है । जल निकालने पर कुआँ स्वच्छ और अभिवर्धित जल से युक्त हो जाता है ।
दान के समान अन्य कोई निधि नहीं है । जिसका धन दान के लिए नहीं , शरीर व्रत के लिए नहीं , है
ज्ञान आत्यन्तिक उपशम के लिए नहीं है , उसका जन्म मात्र मरने के लिए ही है ।
शुभ कार्य में जरा भी ढील न करो । दान जैसे शुभ कार्य में प्रमाद करने पर बाद में उस अवसर के खोने का पश्चाताप होगा ।
खाया – पिया अंग लगा , दान दिया संग लगा , पीछे पड़ा जंग लगा ।
अपने सम्मान , अपमान एवं दान का विज्ञापन नहीं करना चाहिये ।
दान पाप को ढंक देता है तो नम्रता बुराइयों को छिपा देती है ।
मान प्राप्त करने के लिए दान करने से दान का महत्त्व घटता है ।
दान पुण्य का रिजर्व बैंक है ।
दुःख
जन्म दुःख रूप है , बुढ़ापा दुःख रूप है तथा रोग और मृत्यु , ये सभी दुःख रूप हैं । अहो ! आश्चर्य है कि यह सारा संसार ही दुःख रूप है । इस दुःखमय संसार में जीव अपने अपने कर्मों के वश होकर नाना प्रकार के दुःख और क्लेशों को प्राप्त हो रहे
वश होकर नाना प्रकार के दुःख और क्लेशो को प्राप्त हो रहे है
एक बात ठीक तरह से समझ लेनी चाहिए कि अपने दुःखों के लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं ,
अन्य कोई नहीं । जो दुःख आने से पहले ही दुःख मानता है , वह आवश्यकता से ज्यादा दुःख उठाता है ।
तुम्हारा दुःख तुम्हें ही सहना है । बाँटने कोई नहीं आएगा । जिसका अंत दुःख में है , उस सुख का विश्वास नहीं करना र चाहिये ।
दुःख में मिला साहस और विश्वास ही असफलता से उबरने की ताकत बन जाता है ।
सुख के क्षण छोटे और दुःख की घड़ियाँ हमेशा लंबी प्रतीत होती हैं ।
जिसके पास पैसा कम हो वह दरिद्र हो सकता है , परन्तु चाहे जितना पैसा मिलने के बाद भी पैसा जिसे कम ही लगता हो ,
वह दुःखी होता है । व्यथा के बिना किसी के जीवन की कथा नहीं होती ।
सुख प्रायः हमसे मिलकर चल देते हैं , पर दुःख निर्दयता पूर्वक चिपक जाते हैं ।
सुख में सभी यार होते हैं , दुःख में कपड़े भी भार होते हैं ।
अगर आप दुःखों से मुक्त रहना चाहते हैं तो स्वयं को सदा व्यस्त रखिए ।
दुर्जन
शक्कर के केवल एक कण में दूध को मीठा बना देने की ताकत नहीं है , जबकि नींबू की केवल एक बूंद में दूध को फाड़ देने की ताकत है । इस वास्तविकता को सदा याद रखकर दुर्जन की परछाई से भी स्वयं को दूर ही रखना ।
हिरण , मछली और सज्जन , ये तीनों बिना किसी को सताये घास , जल और संतोष से अपना जीवन निर्वाह करते हैं , परन्तु | शिकारी , धीवर और दुर्जन बिना कारण ही इनके शत्रु हुए हैं ।
दुर्जन व्यक्ति बिना दूसरों की निन्दा किए प्रसन्न नहीं हो सकता ।
दुष्ट आदमी को इज्जत या दौलत देना , गोया बुखार के मरीज को तेज शराब पिलाना है ।
दूसरों की बदहाली या बर्बादी का उपहास करने वाले यह न भूलें कि वह ऐसा कर अपने ही दुर्भाग्य को आमंत्रित कर रहे हैं ।
जिस व्यक्ति के विचार उज्ज्वल न हों , आचरण अच्छा न हो , उसका साथ छोड़ देना चाहिये ।
दुर्जन का यह स्वभाव होता है कि वह पहले तो मधुरवाणी बोलकर सज्जनों से अपना मैत्रीपूर्ण व्यवहार कर लेता है ,
किन्तु जब कार्य पूर्ण हो जाता है तब उसकी मधुरता विरोध के रूप में परिणत हो जाती है ।
धन
धन न मिलने के दुःख से भी विपुल धन मिल जाने के बावजूद सुख न मिलने का दुःख कैसा होता है ,
यह जानना हो तो किसी अरबपति के मन में झाँककर देख लेना ।
न्याय से कमाया हुआ धन सम्पत्ति होता है , अन्याय से कमाया हुआ धन विपत्ति बन जाता है ।
धन का संचय शुद्ध व्यवहार से तथा उसका व्यय निःस्वार्थ विचार से करने वाला व्यक्ति उत्तम गति को प्राप्त होता है और सुख भोगता है ।
धन जबरदस्त उपाधि है । मनुष्य धनवान होते ही बदल जाता है
कितने ही मनुष्यों के लिए अर्थ ही अनर्थ का कारण बन जाता है , क्योंकि अर्थ श्रेय में आसक्त मनुष्य वास्तविक श्रेय को प्राप्त नहीं होता ।
धन से परिपूर्ण होने पर फूलना नहीं चाहिये और धन से वंचित | होने पर दुःखी भी नहीं होना चाहिये ।
लड़ाई , हिंसा या कलह से प्राप्त सम्पदा , स्वयं या परिवार किसी के लिए भी कल्याणप्रद नहीं हो सकती ।
धनवान होने से ही कोई धन्य नहीं हो जाता , दान करने से ही कोई दयावान नहीं हो जाता ,
भाषण देने से ही कोई भगवान नहीं हो जाता । धन का क्षय तो काल के साथ ही हो जाता है , लेकिन यश कालजयी होता है ।
जिसके पास धन है वही कुलीन है , विद्वान् है , वही शास्त्रज्ञ और गुणों का पारखी है ।
उसी की वाणी मधुर है और वही दर्शनीय है । सभी गुण सुवर्ण में ही निवास करते हैं ।
शौर्य का मद होने पर व्यक्ति अपनी भुजाएँ देखता है , रूप का मद होने पर दर्पण देखता है , काम का मद होने पर स्त्री देखता है ;
पर धन का मद होने पर व्यक्ति अंधा हो जाता है अर्थात् कुछ नहीं देखता है ।
राम और रावण , ये दोनों ही हैं तुला राशि के , पर फिर भी आप नाम तो राम का ही पसंद करते हो ना । पैसा और परमात्मा , ये दोनों हैं कन्या राशि के , पर आप किसे पसंद करते हो , पैसे को या परमात्मा को ?
व्यक्ति पहले पैसा कमाने के लिए अपना शरीर बिगाड़ता है फिर शरीर सुधारने के लिए पैसा बिगाड़ता है ।
धनोपार्जन प्रामाणिकता से युक्त होना चाहिए । अनीति से अर्जित की गई संपत्ति अंततः दुःखदायी होती है ।
बेईमानी का धन जब घर में आता है तो रोग , दुर्घटना , विपत्ति , अशान्ति इत्यादि समस्याएँ भी साथ – साथ चली आती हैं ।
हम पैसे को अनर्थ में लगा रहे हैं या परमार्थ में लगा रहे हैं या हमारा पैसा व्यर्थ पड़ा है । जहाँ बिना मेहनत का पैसा आता है ,
वहाँ थोड़े बहुत अनर्थ होते ही हैं ।
पैसे के साथ जीवन , ठीक है । पैसे के लिए जीवन पागलपन है । जब पैसा बोलता है , तब सत्य मौन रहता है ।
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