सुवरण को दूँढ़त फिरत कवि व्यभिचारी चोर ।
~~श्री हरि~~
सुवरण को दूँढ़त फिरत कवि व्यभिचारी चोर ।
चरण धरत धड़कत हियो नेक न भावत शोर । ।
कवि, व्यभिचारी और चोर…-ये तीनों ही 'सुवर्ण' ढूँढते है, कबि तो सुवर्ण…अच्छे-अच्छे अक्षरो…