हमेशा अच्छे लोग की संगति करिए।

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ऐसे लोगों की संगति कभी मत करिये जिससे आपको गलत प्रेरणा मिलती हो और आपको नीचे जाने का संयोग मिलता हो आप इससे अपने आप को बचाइये । 


सत्संगादपरो नास्ति ।

साधु की शरण में आने के बाद जीवन में बड़ा परिवर्तन आता है । ध्यान रखो अधिकतर लोग गुरुओं के दर्शन को आते हैं दर्शनार्थी बनकर । सन्त कहते हैं गुरु चरणों में कुछ लाभ लेना है तो दर्शनार्थी बन कर मत आओ शरणार्थी बन कर आओ । तुम्हारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जायेगा ,

हाँ एक बार सौंप दोगे अपने आप को तो जीवन में व्यापक परिवर्तन आ जायेगा । ऐसी कोई बला नहीं जो टूट नहीं सकती । तो पहली बात है दृढ़ संकल्प लीजिये , दूसरी बात है बुराईयों के परिणामों का हमेशा ध्यान रखिये और तीसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण है सत्संगति कीजिये ।

अच्छे लोगों की संगति कीजिये , साधु पुरुषों के सान्निध्य में आइये । जब कभी ऐसा सान्निध्य मिलता है तो उससे जो प्रेरणा मिलती है वो प्रेरणा हमारे मन को मजबूती प्रदान करती है । आज दुनिया में नीचे गिराने के निमित्त बहुत हैं लेकिन अपनी चेतना के उत्कर्ष को दिखाने वाले निमित्त अत्यन्त अल्प हैं । 

साधु संतों के सान्निध्य से हमें ऐसे निमित्त मिलते हैं , ऐसी प्रेरणा मिली है , वो प्रेरणा पाकर हम अपने जीवन में बड़ा बदलाव कर सकते हैं । वो अपने भीतर लाइये । कहते हैं ऐसी संगत वैसी रंगत ।

यन्मूर्खस्य सदा हेया मैत्री दुर्गतिकारिणी।


कुरल काव्य जो सन्त तिरूवल्लवर का एक बहुत अनूठा ग्रन्थ है  तिरूवल्लवर एक जैन सन्त थे । हमारे कुन्दकुन्द आचार्य का ही एक नामांतर है । कुरल काव्य तमिल का वेद माना जाता है और विश्व की सारी भाषाओं में उसका अनुवाद किया गया है । वो ऐसी महान किताब है । उस किताब को खोल करके जहां उंगली डालोगे वहीं आपको सारभूत बात मिलेगी । उसमें आज के सन्दर्भ में जो बात लिखी वो मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ कि लोगों का ये भ्रम पूर्ण विश्वास है कि मनुष्य का स्वभाव उसके मन में बसता है उसका वास्तविक निवास स्थान तो उस गोष्ठी में हैं जिनके बीच वो रहता है । 


ज्ञायते हृदये वासः स्वभावस्य सदा जनैः । 

 परं तस्य    निवासस्तु तद्गोष्ठयां यत्र स स्वयम् ॥


बहुत गहरी बात है यह कि अगर आप अपने जीवन का उत्थान करना चाहते हो तो अपनी गोष्ठी को ठीक करिये अच्छे लोगों की संगति कीजिये ऐसे लोगों के साथ रहिये जिससे आपके सोच का स्तर बढ़ता हो जिससे आपकी चिन्तनधारा अच्छी होती है जिससे आपका चित्त निर्मल होता हो ।

ऐसे लोगों की संगति कभी मत करिये जिससे आपको गलत प्रेरणा मिलती हो और आपको नीचे जाने का संयोग मिलता हो आप इससे अपने आप को बचाइये ।

महानगरीय शिक्षा का व्यामोह ।

अच्छी संगति करने से व्यक्तियों के जीवन में बड़े – बड़े परिवर्तन आते हैं । लेकिन क्या करें आज तो पूरा परिवेश ही उल्टा हो गया है आज अच्छे – अच्छे लोग भी बिगड़ जाते हैं । शिक्षित लोगों में इस तरह के व्यसनों की प्रवृत्तियां क्यों बढ़ गयीं इसके पीछे भी आज के शिक्षा संस्थान जवाबदार हैं ।

स्कूल तक की लाइफ अलग होती है बड़ा अनुशासन होता है लेकिन स्कूल के उपरांत बच्चे जैसे ही कॉलेज में जाते हैं उनके पास पूर्ण उन्मुक्तता और आजादी आ जाती है वहीं उनके जीवन में शिथिलता आने लगती है । जब मैं उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़े हुये बच्चों से बात करता हूँ तो आप सबको सुनकर आश्चर्य होगा ।

जो जानकारी का आपको नहीं वो हमको पता है बच्चे भटके भले हैं लेकिन उनके भीतर आज भी श्रद्धा है । वो गुरुओं के समक्ष अपनी आलोचना करते हैं प्रायश्चित का भाव भी रखते हैं । लेकिन मैं आपको बताऊँ दस बच्चों से मैं बात करता हूँ तो नौ बच्चे पटरी से नीचे उतरे हुये होते हैं गन्दी आदतों के शिकार हो जाते हैं ।

दस में से नौ ? यह आँकड़ा अब तो धीरे – धीरे और बढ़ता जा रहा है और कुछ जगह की पोजीशन तो और भी खराब है उसमें भी खासकर पूना की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है । पूना में पढ़ने वाले बच्चों से मैं पूछता हूँ तो कहते हैं मैं महाराज दस में से दस ही समझ लीजिये अब तो कोई नहीं बचा ये आज का माहौल है । 

कैसे शिक्षा संस्थानों में कुसंस्कार पड़ते हैं इस पर मैं आपको एक उदाहरण बताना चाहता हूँ । एक दिन प्रवचन के बाद एक युवक मेरे पास आया और रोने लगा । महाराज जी प्रायश्चित चाहिये मैंने पूछा क्या बात हो गयी ? मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी । क्या हो गया ? मैंने शराब पी ली , तीन बार शराब पी । मैंने सुना । तो स्तब्ध रह गया मैं उस लड़के को अच्छी तरह से जानता था वो लड़का जो बारहवीं तक इतनी सात्विकता से रहा कि घर से बाहर बाजार में पानी नहीं पिया , छना पानी पीता था वो लड़का ।

इंजीनियरिंग पढ़ने के लिये कॉलेज में गया और शराब पी ली । मैंने पूछा क्या बोल रहे हो तुम ? बोला महाराज जी बहुत बड़ी गलती हो गयी । क्या हुआ ? बोला मैं पहले कॉलेज में गया , हमारे सीनियर मुझसे रैगिंग करने लगे । रैगिंग के क्रम में मुझे बियर की गिलास में पानी पिलाया । उनके दबाव में मैंने पी लिया एक दो बार उनने मेरे पानी में बियर मिला के पिलाया ।

फिर महाराज जी बार – बार उनका आग्रह और दबाव रहा तो मैंने भी सोचा इन्ज्वाय करके देखने में क्या बुराई है , महाराज जी मैंने तीन बार शराब पी ली । आज मुझे ऐसा लग रहा कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है । महाराज श्री आप मुझे माफ करें और प्रायश्चित दें ।

 उस बच्चे के संस्कार अच्छे थे और सान्निध्य पा गया तो उसके अंदर आत्मग्लानि हुयी परिवर्तन आ गया नहीं तो ये भी हो सकता था कि वो बच्चा रोज शराब पीने का आदी बन जाता । बंधुओं मैं कहना चाहता हूँ कि शायद आज के माता – पिता को ये पता नहीं । माता – पिता उच्च शिक्षा संस्थानों में अपने बच्चों को शिक्षा के लिये भेजते हैं लेकिन उनके संस्कारों की तरफ कभी ध्यान नहीं देते । 

आज का माहौल इतना गन्दा हो गया है कि आप पूछिये मत । ये बात हर वो व्यक्ति अनुभव करता है जो उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ करके आया है । पढ़ाई का स्तर तो ऊँचा उठा लेकिन चरित्र के स्तर में दिनोंदिन गिरावट आती जा रही है ।

ऐसी संगति से भी बचाना चाहिये और बच्चों को जब आप उच्च शिक्षा संस्थानों में भेजें तो उनको कुछ हिदायतें दें । गुरुओं के सामने प्रतिज्ञाबद्ध कराकर ले जायें और समय – समय पर साधु संतों के सान्निध्य में उनको लाने की चेष्टा करें ताकि वो अपने आपको बचा सकें ।

आज कल माँ- बाप में भी यह कमी है कि वो अपने बच्चों की पढ़ाई का तो पूरा ख्याल रखते हैं लेकिन उनके संस्कारों की तरफ उनका ध्यान नहीं रहता वे ये नहीं देखते कि उन बच्चों के संस्कारों का क्या हाल हो रहा है ? बस पढ़ रहा है पढ़ने के लिये उसको अच्छी अच्छी फैसिलिटी होनी चाहिये ।

अच्छे से अच्छे उच्च शिक्षा संस्थान में उसको भेजना चाहिये , ये भी स्टेटस का सिम्बल बन गया है । ये बात अलग है कि बच्चे का बौद्धिक स्टेटस क्या है उसका कुछ अता पता नहीं , पर हम पैसे वाले हैं तो मेरा बच्चा बड़े कॉलेज में / बड़े स्कूल में पढ़ेगा तभी तो कुछ होगा । पढ़ाईये मुझे आपकी पढ़ाई से कोई ऐतराज नहीं ।

शिक्षा होनी चाहिये लेकिन ध्यान रखो वही शिक्षा सार्थक है जिसके साथ संस्कार है संस्कृति के कवि कहते हैं : ये


  साक्षरा : त एव विपर्ययेन राक्षसाः भवन्ति । 


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