येषां त्वन्सगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।

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~~श्री हरि~~
 
येषां त्वन्सगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्रमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: । ।
जिनके पाप नष्ट हो गये हैं, वे ही दृढ़व्रत होकर भगवान् के भजनमें लंग सकते हैं । ‘राम’ नामके विषयमेँ भी ऐसी ही बातें शास्श्रोमेँ पढते हैं, संतोंसे सुनते हैं । ऐसी ही हमने एक घटना सुनी है… बॉंकुड़ाक्री बात है । एक सज्जन थे श्रीबद्गीदासजी गोयन्दका । वे अपनी बीती घटना सुनाने लगे । एक बूढा बंगाली सरोबरके किनारे मछलियाँ पकड़ रहा था । श्रीजयदयालजी गोयन्दका एवं . श्रोबद्रोदासजीनै उसे देखा और कहा… ‘यह बूढा हो गया, बेचारा भजनमें लग जाय तो अच्छा है ।’ उससे जाकर कहा कि तुम भगवन्नाम-उच्चारण करो तो उसे ‘राम’ नाम आया नहीं । वह मेहनत करनेपर भी सही उच्चारण नहीं कर सका । कईं नाम बतानेके बाद अन्तमें ‘हारे-हारे कहने लगा । इस नामका उससे उच्चारण हुआ और कोई नाम आया ही नहीं । उससे पूछा गया कि ‘तुम्हें एक दिनमेँ कितने
पैसे मिलते हैं ? ‘ उसने बताया कि इतनी मछलियाँ मारनेसे इतने पैसै मिलते हैं । तो उन्होंने कहा कि ‘उतने पैसोंके चावल हम तुम्हें दे देंगे । तुम हमारी दूकानमें बैठकर दिनभर होरे-होरे (हरि-हरिं) किया करो ।’ २ उसको किसी तरह ले गये दूकानपर । वह एक दिन तो बैठा । दूसरे दिन  देरसे आया और तीसरे दिन आया ही नहीं । फिर दो-तीन दिन बाद  जाकर देखा, वह उसी जगह धूपमें मछली पकड़ता हुआ मिला । उन्होंने  उसे कहा कि ‘तू वहाँ दूकानमें छायामेँ बैठा था । क्या तकलीफ थी ?
. तुमको यहॉ जितना मिलता है, उतना अनाज दे देंगे, केवल दिनभर बैठा हरि…हरि कीर्तन किया कर ।’ उसने कहा…’मेरेसे यह नहीं होगा । ‘ वह दूकानपर बैठ नहीं सका । ऐसी बीती हुई घटना बतायी  म हमारे विश्वास हुआ कि बात तो ठीक है भाई ! पापीका शुभ काम में लगाना कठिन होता है।
जैसे ज्वर के जोरसे भूख बिदा हो जात ।।
जब ज्वर (बुखार) का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता । . उसको अन्नमेँ भी गन्थ आती है । जैसे भीतरमें बुखार का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता, वैसे ही जिसके पापोका जोर ज्यादा होता है, वह भजन कर नहीं सकता, सत्संगमेँ जा नहीं सकता ।
इसलिये सज्जनों ! एक बातपर आप ध्यान दें । जो भाई सत्संगमें रुचि रखते हैं, सत्संगमेँ जाते हैं, नाम लेते हैं, जप करते हैं, उन पुरुषोंक्रो मामूली नहीं समझना चाहिये । वे साधारण  आदमी नहीं हैं । वे भगवानका भजन करते हैं, शुद्ध हैं और भगवान के
कृपा-पात्र हैं । परंतु जो भगवान की तरफ़ चलते हैं, उनको अपनी बहादुरी नहीं माननी चाहिये कि हम बड़े अच्छे हैं । हमेँ तो भगवानकी कृपा माननी चाहिये, जिससे , हमे सत्संग, भजन ध्यानका मौका मिलता है । हमेँ ऐसा समझना चाहिये कि ऐसे कलियुगके समयमे हमेँ भगवानकी बात सुननेको मिलती है, हम भगवानका नाम लेते हैं, हमपर भगवानकी बडी कृपा है ।
जैसे नदीका प्रवाह समुद्रकी तरफ जा रहा है, ऐसे ही इस समय संसारका प्रवाह नरकोंकी तरफ़ बड़े जोरोंसे जा रहा है .। पढ़ाई में रस्म-रिबाजमें, कानून-कायदोंमेँ, व्यापार आदि कार्योंमेँ जहाँ कहीं भी देखो, पापका बड़े जोरोंसे प्रवाह चल रहा है ।

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