सूर नर मुनि सब् कैं यह रीती ।
सूर नर मुनि सब् कैं यह रीती ।
स्वारथ लागि करहि सब प्रीती । ।
स्वारथ मीत सकल जग माहीं ।
सपनेहुँ प्रभु परमारथ नाहीं ।।
प्राय: सब लोग स्वार्थसे ही प्रेम करनेवाले हैं; परंतु ‘हेतु रहित जग जुग उपकारी’ -दो बिना स्वार्थके हित करनेवाले हैं । ‘तुम्ह तुम्हार सेवक असुरांरी’ -एक आप और दूसरे आपके प्यारे भक्त । ये बिना स्वार्थ, बिना मतलबके दुनियामात्रका हित करनेवाले हैँ । गीतामेँ भी भगवान् कहते हैं…मेरेको सब प्राणियोंका सुहृद् जाननेसे शान्ति मिलती है । “सुहृद: सवदेहिनाम्‘ … भगवान्के जो भक्त होते हैं, वे प्राणी-मात्रके सुहृत् होते हैं । दुनियाका हित कैसे हो–ऐसा भगवान्का भाव निरन्तर रहता है । इस तरह भगवान् के प्यारे
भक्तोंके हृदयमे भी दुनियामात्रके हितका भाव निवास करता है ।
उमा संत कइ इहइ बड़ाईं ।
मंद करत जो करइ भलाई । ।
अपने साथ बुरा बर्ताव करनेवालोका भी सन्त भला ही करते हैं ।
इसलिये नीतिमेँ भी आया है निष्पीडितोऽपि मधुरं व्यक्ति इक्षुदण्ड
ऊखको कोल्लूमे पेरा जाय तो भी वह मीठा ही मीठा रस सबको देता है । ऐसा नहीं कि इतना तंग करता है तो कड़वा बन जऊँ ! वह मीठा ही निकलता है; क्योंकि उसमें भरा हुआ रस मीठा ही है । ऐसे ही सन्त-महात्माओँको दु:ख दे तो भी वे भलाई ही करते हैं; क्योंकि उनमे भलाई ही भलाई भरी हुई है, यह विलक्षण बात है कि मगवान् स्वाभाविक ही सबका हित करनेवाले हैं । भगवान्का भजन करनेसे, मन लगानेसे, ध्यान करनेसे, भगवान्का नाम लेनेसे भजन करने वालोंमें भी भगवान्के गुण आ जाते हैं अर्थात् वे विशेष प्रभावशाली हो जाते हैँ । नाम-जपसे उनमें भी विलक्षणता आ जाती है ।
नर नारायन सरिस सुभ्राता ।
जग पालक बिसेषि जन त्राता ।।
ये दोनों अक्षर नर-नारायणके समान सुन्दर भाई हैँ, ये जगतका पालन और विशेषरूपसे भक्तोंक्री रक्षा करनेवाले हैँ । जैसे नर और नारायण दोनों तपस्या करते हैं और साथमेँ ही रहते हैं । लोगोंके सुखके लिये, आनन्दके लिये और वे सुख-शान्तिसे रहें, इसी बातको लेकर बदरिकाश्रम (उत्तराखण्ड) में तपस्या करते हैं । इसी तरहसे नाम महाराज भी सबकी रक्षा करते हैं । ये दोनों अक्षर भाईं-भाई हैँ । ‘जग पालक बिसेपि जन त्राता’ …-मात्र जगत् का पालन करते हैँ और जो ‘ भगवान्के भक्त होते हैं, उनकी विशेषतासे रक्षा करते हैं । ऐसाही संतोंका स्वभाव होता है और दुष्ठोंका स्वभाव कैसा होता है…-
बयरु अकारन सब काहू सों ।
जो कर हित अनहित ताहू सों ।।
हित करनेवालेके साथ भी वे विरोध करते हैँ, पर भगवान्के भक्त सबका हित करते हैँ और अपना अहित करनेवालोंपर वे विशेष कृपा करते हैं ।
नर नारायन सरिस सुभ्राता ।
जग पालक बिसेषि जन त्राता ।।
ये दोनों अक्षर नर-नारायणके समान सुन्दर भाई हैँ, ये जगतका पालन और विशेषरूपसे भक्तोंक्री रक्षा करनेवाले हैँ । जैसे नर और नारायण दोनों तपस्या करते हैं और साथमेँ ही रहते हैं । लोगोंके सुखके लिये, आनन्दके लिये और वे सुख-शान्तिसे रहें, इसी बातको लेकर बदरिकाश्रम (उत्तराखण्ड) में तपस्या करते हैं । इसी तरहसे नाम महाराज भी सबकी रक्षा करते हैं । ये दोनों अक्षर भाईं-भाई हैँ । ‘जग पालक बिसेपि जन त्राता’ …-मात्र जगत् का पालन करते हैँ और जो ‘ भगवान्के भक्त होते हैं, उनकी विशेषतासे रक्षा करते हैं । ऐसाही संतोंका स्वभाव होता है और दुष्ठोंका स्वभाव कैसा होता है…-
बयरु अकारन सब काहू सों ।
जो कर हित अनहित ताहू सों ।।
हित करनेवालेके साथ भी वे विरोध करते हैँ, पर भगवान्के भक्त सबका हित करते हैँ और अपना अहित करनेवालोंपर वे विशेष कृपा करते हैं ।