भरत तीसरे पहर कहँ किन्ह प्रबेसु प्रयाग।ज्ञान

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      भरत तीसरे पहर कहँ किन्ह प्रबेसु प्रयाग।
कहत राम सिय राम सिय उमगि अनुराग ।।

प्रेम में उमंग उमंग कर राम सिया राम सिया कहने लगते हैं उस समय प्रेम की अधिकता के कारण दोनों की एकता का अनुभव होता है इसलिए चाहे श्री सीता राम कहो चाहे राम सीता कहो यह दोनों अभी हैं ऐसे श्री सीताराम जी की वंदना करते हैं अब इससे आगे नाम महाराज की वंदना करके नो दोहों में नाम महिमा का वर्णन करते हैं एक नाम जप होता है और एक मंत्र जप होता है राम नाम मंत्र भी है और नाम भी है नाम में संबोधन होता है तथा मंत्र में नमन और स्वाहा होता है जैसे रामाय नमः यह मंत्र है इसका विधि सहित अनुष्ठान होता है और राम राम राम ऐसे नाम लेकर केवल पुकार करते हैं राम नाम की पुकार विधि रहित होती है इस प्रकार भगवान को संबोधन करने का तात्पर्य यह है कि हम भगवान को पुकारे जिससे भगवान की दृष्टि हमारी तरफ खींच जाए।
कैसा ही क्यों न जन नींद सोता
जैसे सोए हुए किसी व्यक्ति को पुकारे तो वह अपना नाम सुनते ही नींद से जग जाता है ऐसे ही राम राम राम करने से राम जी हमारी तरफ खींच जाते हैं ऐसे एक बच्चा मामा को आता है तो माताओं का चित्र उस बच्चे की तरफ आकृष्ट हो जाता है जिनके छोटे बालक हैं उन सब का एक बार तो उस बालक की तरफ चित्र कीजिएगा पर उठकर वही मां दौड़ेगी जिसको वह बच्चा अपनी मां मानता है मां नाम तो उन सब का ही है जिनके बालक है फिर वह सब क्यों नहीं दौड़ती सब कैसे दौड़े वह बालक तो अपनी मां को ही पुकारता है दूसरी माताओं के कितने ही सुंदर गहने हो सुंदर कपड़े हो कितना ही अच्छा स्वभाव हो पर उनको वह अपनी मां नहीं मानता वह तो अपनी मां को ही चाहता है इसलिए उस बालक की मां ही उसकी तरफ खींचती है ऐसे ही राम राम हम आर्त होकर पुकारते और भगवान को ही अपना माने तो भगवान हमारी तरफ खींच जाएंगे।

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