कैसे लगेगी सीख तुम्हारी ? सावधान करती घटनाएँ।

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कैसे लगेगी सीख तुम्हारी ?  सावधान करती घटनाएँ।


कैसे लगेगी सीख तुम्हारी ? 

मेरे संपर्क में एक डाक्टर थे , बहुत बड़े डॉक्टर आर्कोलोजिस्ट , कैंसर के ..डॉक्टर वो खुद गुटखा खाते थे मैंने कहा डॉक्टर साहब मुझे समझ में नहीं आया अनपढ़ लोग गुटखा खायें तो ठीक लेकिन आप डॉक्टर हो आर्कोलोजिस्ट हो कैंसर के डॉक्टर हो और आप गुटखा खा रहे हो तो बलिहारी है आपकी ।

बोले महाराज जी क्या करूँ स्टूडेण्ट लाइफ से ही आदत बन गयी छूटती नहीं । हम बोले ध्यान रखो तुम्हारी आदत बाहर से कोई छुड़ा नहीं सकता पर गुरुओं की शरण में आओगे तो एक पल में आदत छूट जायेगी । इस आदत को छोड़ो ।

तुम कैंसर का इलाज कर सकते हो लेकिन आदत का इलाज करने की व्यवस्था तुम्हारे पास नहीं दुनिया में जितने भी चिकित्सा के संस्थान हैं वे सब व्यक्ति के तन की बीमारियों का इलाज करते हैं आदता का नहीं । 

आदत ऐसे नहीं जायेगी आदत दृढ़ संकल्प से जायेगी । मैंने उनको समझाया और मेरे कहने का उन पर व्यापक असर पड़ा और उनने उसको न खाने का संकल्प ले लिया । उननें कहा महाराज आपने मुझे झकझोर दिया ।

वाकई में मैं जो ये करता था वह मेरे लिये शोभनीय नहीं था अब मैं लोगों से कह सकता हूँ कि भैया गुटखा मत खाना । हमने कहा अब तुम कह ही नहीं सकते अब तुम्हारे कहने का असर भी होगा । मुँह में गुटखा दबाकर तुम किसी से कहो भैया गुटखा नहीं खाओ तो वो कभी प्रभावित नहीं होगा ।

एक आदमी शराब के नशे में धुत था और नाली के किनारे पड़ा हुआ था एक दम बेसुध होकर पड़ा हुआ था । कुछ लोगों ने उसे बाहर निकाला देखा पूरा शरीर लथपथ है । उससे बोला भाई तुमने अमुक आदमी की किताब नहीं पढ़ी ? उसने शराब के बार में किताब लिखी है ।

वो किताब बहुत पुरजोर किताब है उस किताब को पढ़कर लाखों लोगों ने शराब छोड़ दी । तुमने इतनी प्रसिद्ध वो किताब नहीं पढ़ी ? इतना सुनते ही उसने कोट की जेब से वो किताब निकाली और सामने वाले के हाथ में दे दी । लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस किताब को पढ़ने के बाद भी तुम शराब नहीं छोड़ सके ? 

उसने कहा जी मैं ही इसका लेखक हूँ । ऐसे पढ़े लिखे लोगों को हम क्या कहेंगे ? ये मूढ हैं , मूढों की टोली है । अपने आप को इन सब प्रवृत्तियों से बचाने की कोशिश करिये ।

 सावधान करती घटनाएँ।

गुजरात कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक डाक्यूमेंट्री फिल्म तैयार की है बीस मिनट की फिल्म है जिसका शीर्षक है विश्लेषण । इस फिल्म में सब प्रकार के तंबाकू और तंबाकू उत्पाद के दुष्परिणामों को इतने अच्छे तरीके से दर्शाया है कि अगर एक बार व्यक्ति उसको देख ले तो फिर कोई मूढ ही होगा जो उनका सेवन करेगा ।

इनसे अपने आप को बचाईये ये बुरी आदत है पूरे विश्व में लाख लोग प्रतिवर्ष केवल तंबाकू उत्पाद के सेवन से मरते हैं । सिगरेट पीने वाला जैसे जैसे सिगरेट पीता है जहर उसके शरीर में प्रवेश करता जाता है । सिगरेट का कश खींचने से जैसे सिगरेट छोटी होती जाती है , वैसे ही आदमी की जिन्दगी भी छोटी होती जाती है । 

गुटखा मसाले के परिणाम बहुत खतरनाक होते हैं लेकिन जो इनके आदी हो जाते हैं उनकी हालत भी बड़ी विचित्र हो जाती है एक बार एक महिला ने अपने पति की शिकायत करते हुये मुझसे कहा कि महाराज जी इनका गुटखा इनसे छुड़वा दो ।

मैंने कहा क्यों भाई क्या बात है ? उनने कहा महाराज इनको छोड़ सकता हूँ पर गुटखा नहीं छोड़ सकता हूँ । मैं आपको बताऊँ ढाई महीने बाद उस आदमी को कैंसर हो गया वो तो भाग्यशाली था कि कैंसर समय पर डिटेक्ट हो गया और वो आदमी आज भलाचंगा है , बचा हुआ है ,

लेकिन फिर जब उसे पता लगा और वो आया बोला महाराज कान पकड़ता हूँ काश आपकी बात पहले मान ली होती तो मेरी आज ये दुर्दशा नहीं होती । आदमी बाद में चेतता है । जब उसके हाथ में कुछ नहीं रहता तब चेतता है ।

संत कहते हैं बुरी आदतों को रोको जब तक तुम्हारे जीवन में बुरी आदतें होंगी तब तक अपने जीवन को संभाल नहीं पाओगे कितनी भी पूजा करो , पाठ करो , भक्ति करो , तुम्हारी पूजा तुम्हारी भक्ति , तुम्हारे भजन तब तक सार्थक नहीं हैं जब तक तुम बुरी आदतों को दूर नहीं करोगे ये तुम्हारे चेतना के स्तर को नीचे गिराता है जिसके कारण तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के ऊपर कुसंस्कार पड़ते हैं ।

कोई आदमी खुद सराब पीता हो और वो चाहे कि मैं अपने बच्चों को शराब पीने से रोकूँ तो क्या वह रोक पायेगा ? जो आदमी खुद गुटखा और मसाला खाता है वो चाहे कि हम अपने बच्चों को गुटखा और मसाला खाने से बचा लें तो क्या वो रोक पायेगा ? 

जो आदमी खुद किसी दुर्बलता का शिकार है वो क्या किसी दूसरे की दुर्बलता को दूर करने में समर्थ हो पायेगा ? कतई नहीं हो पायेगा । इसलिये अपने अंदर की दुर्बलताओं के प्रति सचेत होना चाहिये ।

अभी मैं बताऊँगा कि कैसे आप दुर्बलतायें छोड़ते हैं लेकिन इतना मैं कहता हूँ कि अपनी बुरी आदतों को सुधारने की कोशिश करें जब तक बुरी आदतें आप दूर नहीं करते तब तक काम नहीं होता । नत्थू जी आपके बीच हैं हमेशा बड़ा प्रिय भजन गाते हैं ।


मन की तरंग मार ले बस हो गया भजन 

आदत बुरी सुधार ले बस हो गया भजन |


हम सब यहां भजन करने बैठे हैं । आदत संभाल ले बस हो गया भजन । वाकई में वास्तविक भजन तो अपने जीवन का रूपांतरण है और जीवन का रूपांतरण तब तक घटित नहीं होगा जब तक मनुष्य स्वयं के प्रति संवेदनशील नहीं होता ।

हमें अपने आप के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है । अपने हित के प्रति हमें कटिबद्ध होने की जरूरत है , अपने जीवन के कल्याण के प्रति हमें तत्पर होने की जरूरत है । जब तक ऐसी तत्परता हमारे भीतर घटित नहीं होती तब तक हम कभी किसी बुराई से मुक्त हो सकते ।

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