बुराई में भी अच्छाई से सूत्र हैं ।
सन्तोषी सदा सुखी। बुराई में भी अच्छाई से सूत्र हैं ।
सन्तोषी सदा सुखी।
दूसरी बात है- जो है जितना है उतने में संतुष्ट रहिये । आज मनुष्य के पास जितना है , उसमें उसे चैन नहीं है । पर्याप्त होने के बाद भी मन में असंतोष होता है । संत कहते हैं कि असंतुष्ट व्यक्ति सदैव दुखी रहता है और सुख केवल संतोषी को मिलता है ।
आज तुम्हारे पास जो है यदि तुम उसमें सुखी नहीं हो तो उससे कैसे सुखी होगे जिसे तुम पाना चाहते हो और पा लोगे तो उसके बाद भी संतुष्टि मिलेगी ही इसकी क्या गारंटी है ? अपने जीवन को सुखी बनाना चाहते हो , तो जो तुम्हारा है वही तुम्हारे काम का है जो पड़ोसी का है उसको देखने से सिवाय बेचैनी व ईर्ष्या के भाव के तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला ।
उसको क्यों देखते हो , तुम अपना देखो । तुम्हारे पास जो है , जितना है उतने को देखोगे तो तुमको कभी कठिनाई नहीं होगी और दूसरे को देखते रहोगे तो सिवाय कठिनाई के और कुछ नहीं मिलेगा ।
एक बार एक दम्पत्ति मेरे पास आये । पति किसी बात से उदास था । मैंने पूछा कि भाई क्या बात है , बड़े उदास से दिख रहे हो ? बोला महाराज जी , बहुत नुकसान हो गया । मैंने पूछा क्या हुआ ? बोला लाखों का नुकसान हो गया । मैंने कहा- क्या बात है ? मैं बोल ही रहा था कि पत्नी ने बीच में ही टोंकते हुए कहा कि महाराज , छोड़िए इनकी बात को , इनकी तो आदत ऐसे ही हैं ।
ये कभी नहीं कहते कि लाख का फायदा हुआ है । मैंने पूछा , क्या बात है ? बोली महाराज , कल ही 1500 रुपए की खरीद का चना 1900 के भाव बिक गया । इनको दो लाख का फायदा हो गया । महाराज आज संयोग से भाव बढ़कर 2100 का हो गया तो कहने लगे कि लाख का नुकसान हो गया ।
अरे , जो अर्जित किया है , उसका सत्कार नहीं कर सकोगे तो जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकते । अपने जीवन को सुखी करना चाहते हो जो मिला , जितना मिला उसको स्वीकार कर लो , तुम्हारे भाग्य का ही तो है जो नहीं मिला । उसके लिए व्याकुल होने से कोई लाभ नहीं होने वाला ।
बुराई में भी अच्छाई से सूत्र हैं ।
तीसरी बात , बुराई में अच्छाई देखना । सब प्रकार की बातें होती हैं और हर चीज के दो पहलू होते हैं । आपके ऊपर है कि आप उसको कैसे देखते हैं । यदि बुरी निगाह से देखोगे तो भगवान महावीर एवं बुद्ध में भी बुराइयां दिखेंगी और अच्छाई की दृष्टि से देखोगे तो रावण जैसे आतताई में भी गुण दिखेंगे ।
श्री राम ने जीवन के आखिरी क्षणों में भी जब रावण मरणासन्न था तब लक्ष्मण को रावण के पास भेजा था कि जाओ और उससे नीतियां सीखो । रावण भले ही एक अभिमानी राजा था लेकिन बड़ा नीतिनिपुण भी था , उसकी नीतियां हमारे सामने आयी थीं ।
श्री राम जैसे उदारदृष्टि संपन्न लोगों के जीवन में ही संभव है , जिन्होंने शत्रु के भीतर भी गुण देखे । संत कहते हैं कि अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहते हो , अपने जीवन में बेहतरी लाना चाहते हो तो बुराई में भी अच्छाई देखने की कोशिश करो ।
कितनी भी बुराई हो उसमें अच्छाई देखने की कोशिश करो , हर चीज धीरे – धीरे ठीक हो जायेगी और तुम्हारा दुख भी हल्का हो जायेगा । एक व्यक्ति अपने मित्र के यहां गया , उसका बेटा पागल था । बातचीत हुई , पूछा तुम्हारा नाम क्या है ? तो उसने बोला- पी.चिदम्बरम ।
उसके पिता से कहा कि क्या बात है ? तुम्हारे बेटे की हालत तो बहुत खराब है । उसके नाम पूछता हूँ तो अपना नाम पी चिदम्बरम बताता है । पिता बोला नहीं , पहले से ठीक है ।
पहले से ठीक , वह बोला पहले से ठीक क्या बोल रहे हो ? मैंने नाम पूछा तो पी चिदम्बरम बता रहा है । अरे भाई इसीलिए तो कह रहा हूँ कि पहले से ठीक है क्योंकि कल तक यह अपना नाम मनमोहन सिंह बोलता था ।
आप जिंदगी को उस दृष्टि से देखने की कोशश करिये इन्ज्वाय इन्ज्वाय ही रहेगा । वास्तविक आनंद जीवन का तभी है जब आप हर बात को उसी तरीके से देखने की कोशिश करेंगे , देखने वाले की दृष्टि होनी चाहिये , यदि आपके पास दृष्टि है तो बंद घड़ी भी आपको दिन में दो वक्त सही टाइम बता सकती है ।
यदि दृष्टि है तो बंद घड़ी से भी दो बार सही समय देख सकते हैं । आप देखने की कोशिश कीजिए । लोगों का नजरिया उल्टा होता है । वह अच्छाई में भी बुराई देखने के आदि होते हैं ।
बुराई में अच्छाई देखने वाले बहुत कम हैं । संत कहते हैं कि क्या मिलेगा तुमको बुराई देखकर ? जिन्दगी में ऐसी कितनी बुराइयां भरी पड़ी हैं । बुराइयों को देखोगे तो बुराइयां बढ़ेगी ।
अच्छाई को देखोगे , अच्छाई बढ़ेगी और वह तुम्हारे जीवन में आनंद को प्रकट करेंगी । अच्छाइयां देखने की कोशिश करिये । बुरे में भी अच्छा आप कैसे देख सकते हैं ?
एक कंपनी में दो व्यक्तियों की नियुक्ति करनी थी । एम.बी.ए. पास दो युवक आये । दोनों का इण्टरव्यू लिया गया । पहले से पूछा गया कि का फुल फार्म क्या है ? उसने कहा मुझे बिगाड़ना आता है ।
एम.बी.ए.- मुझे बिगाड़ना आता है । वह बाहर गया । दूसरे से पूछा गया कि एम.बी.ए. का फुल फार्म क्या है ? उसने कहा कि मुझे बनाना आता है । मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप कौन से एम.बी.ए. को पसंद करोगे ?
बिगाड़ने वाले को या बनाने वाले को ? आप सच्चे अर्थों में मैनेजमेंट में माहिर होना चाहते हो तो बनाना सीखिए , बिगाड़ना नहीं , ये जीवन का सबसे बड़ा सोच है । बनाने की सोचिए , बिगाड़ने की नहीं । बसाने की सोचिए . उजाड़ने की नहीं ।
अगर जीवन में नया वातावरण बनाना है तो मिलाने की सोचिए , ठुकराने की नहीं , जीवन धन्य हो जायेगा । हमारे जीवन में ऐसा ही होना चाहिए ।
हम बुराई में अच्छाइयां देखने की कोशिश करें । कहीं किसी की कोई बुराई हो तो उसे अनदेखा करके उसकी अच्छाई को देखें । हमारे गुरु महाराज ने कहा कि कोई व्यक्ति कितना भी गंदा क्यों न हो , उसमें एक न एक अच्छाई जरूर होगी । चाहे महल हो या कुटिया , उसमें कम से
कम एक प्रवेश कर सकते हो , बशर्ते तुम्हारी दृष्टि उस अच्छाई को पकड़ने में होनी चाहिए । अच्छाई तुम देखना चाहो तो देख सकते हो , हर व्यक्ति के जीवन में अच्छाईयां भी हैं और बुराइयां भी हैं , लेकिन हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम बुराई को अनदेखा करके अच्छाई को देखने की कोशिश करें और यदि कोई बुराई भी है तो उसमें से भी अच्छाई निकालने की कला सीख लें ।
यदि ऐसी कला हमारे जीवन में प्रकट हो जाती है , तो जीवन की दशा व दिशा दोनों परिवर्तित हो जाती है । ऐसा व्यक्ति संसार में कभी दुखी नहीं हो सकता , इसलिए उस अच्छाई को अभिव्यक्त करने की हमारी कोशिश होनी चाहिए ।
बुराई में अच्छाई देखने की बात हमारे जीवन में आनी चाहिए , लेकिन लोग उल्टा पुल्टा ही करते हैं । व्यक्ति को अपने दोष नहीं दिखते हैं , दूसरों के दोष बहुत ज्यादा दिख जाते हैं । चलनी सुई से कहती है कि अरी बहन देख तो तेरे मुंह में छेद है । सुई ने विनम्रता से कहा बहन थोड़ा खुद के भीतर तो झांक तू तो छेद से ही बनी हे । सुई में छेद जरूर है लेकिन वही छेद कपड़े सीने के काम आती है ,
यदि सुई में छेद न हो तो सिलाई भी नहीं हो सकती । बंधुओ , कभी – कभी बुराई भी अच्छाई का काम कर जाती है । इसलिए संत कहते हैं कि जीवन को सार्थक बनाने का जो अगला सूत्र है , वह है बुराई में अच्छाई देखने की कोशिश । आपकी अच्छी दृष्टि पर सब कुछ अवलंबित है , आप कैसा देखते हैं किस दृष्टि / किस एंगल से देखने की कोशिश करते हैं । आपको वही सब कुछ मिलेगा ।